बंगला के आधुनिक कवि | Bangala Ke Aadhunik Kavi

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Bangala Ke Aadhunik Kavi by मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चेंगला के आधुनिक कवि श्६ के अस्तु यो स्पष्ट फरने के लिये यहुतव-सी यसस्‍्तुओ को लाकर गॉँव के सामने ढेर कर तेते हैं, वे चित्र को चित्र से द्वी स्पष्ट करते 1 आलोज ओर छाया इन दो ही यर्णों में सगममेर सी भांति ऊस प्पने को ग्रझाशित करतो हू, ठसी प्रझ्मार उनकी यनाई हुई मूर्तियां त्वन्त सरल और आम सुस दु स वी छाया और आलोक से (मारे सामने स्पष्ट हो जाती ह। इसलिये देसते में मिंटन को अ्रनुमरण करते हुए मालूम होने पर भी मधुसूलन मनुष्य की दुनिया री पीछे और नोचे छोडकर महाकात्य के अत्युच कपलोऊ में पीमाहान दिगूटश म अपनी कल्पना जो भेत्र नहीं पाये | मल॒ुप्य को ही उन्होंने यडा करते देखा था। पुरुष का परीसष चथानारी के नागीत्व ने उनसे मन री जीभ में जो रस जा संचार जिया था, उसी सी ज्याइलता में ये काज्य लिग्े गय्रे ह | माटजेल को पढने से यह मालूम होता है जैमे दस गायनप्राण बगला कपि ने एफ नये जगत पा आपिप्पार किया हो, वहा हल्य-्समुद्र वी जलसाई हुई लहरों की अलम फेनरेंगगा युलयुला की माला म यिजुप्र हो जाती £, किन्तु उसी के साथ दूर से आया हुआ जल का क्लक्‍ल ओर भम्ननीया- यात्री का आतेनाट एफन्‍्त निकुत के वशीरय को एक अपूर्त वेटना में प्रतिध्चनित कर नेता है। करिकल्पना के इस नग्रे अभियान ने नये साहित्य बी गति को एक निर्तेश टिया था, फलस्वरूप मन के सच्म लीलाजिलासों से उखपर होकर मनुप्य को तेह के राय में स्यडा करवायसर रस स्थाभापिक श्रामर, प्रसार तथा रूप को देखने ही आताज्षा । जगी पाप पुण्य से पर उसे प्रा्ों फ्री हमें निय्रति के अमोध नियम से जमी भीषए-मछुर हो उठती हैं, इस बंगला कवि के चित्त मे स्‍सी की प्रेरणा जगी वी | +- माइकल पर फ्परान्द्र उप्रीख ने माइकल के सस्पाय से लिया है “आपधुनिर पँगला नदेपों आधुनिक बॉगला साहित्य, प्‌ १६




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