प्राग्वाट - इतिहास भाग - 1 | Pragvat-itihas Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35 MB
कुल पष्ठ :
710
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जैसा पूर्व आचार्यश्री के परिचय में लिखा जा चुका है कि वि० सं५ २०७० में चातुर्मास परचात्
जब आचार्य भीमद् विजययदीन्द्रशरिजी बागरा में विराजमान थे, आप उनके दर्शनार्थ चहां आगे थे। असंगेवरश
आखाटविहाप् की रचना... गुरुदेव मे आपका और अन्य प्राग्वाट्ावीय सज्जनों का ध्यान ज्ञातीय इतिहास के
और आपका उछ्तसे संबंध. महत्य की ओर आकृष्ट क्रिया और आपको प्राम्वाद््ञाति का इत्तिहस लिखाने-की
है ह सें० २०० है प्रेरणा दी ! इस सदुपदेश मरे आपके अंतर में रहा हुआ ज्ञाति का गौरव जाग्रत हो
दिलोव अधिवेशन और. उठा और आपने गुरदेव के सम प्राखान्-इतिहास लिखाने का प्रस्ताव सहर्प स्वीछत
प्रयाट-इतिहाप्त लिखने. कर लिया | उसी दिन से आपके मस्तिष्क के अधिकांश भाग को प्राम्वाठज्ञाति के
का अस्ताव: इतिहास-लेखन के विषय ने अधिकृत कर जिया । शुरदेव ओर आपमें इस वरिपय पर
निरंतर पत्र-ब्यवह्दार होता ही रहा |
श्री 'पौरवाड़-संब-सभा” का द्वितीय अधिवेशस वि० सं० २००१ माघ कृष्णा 9 को “श्री बद्धामान जन वोटिंग
हाउस, सुमेरपुर के विशाल भवन में हुआ। आपने इतिदास लिखने का प्रश्ताव समा के समन रक्खा आर बह
सहर्ष स्व्रीकृत शुआ तथा समा ने प्रस्ताव पास॒ करके इतिद्वास लिखाने के लिये निम्न प्रकार समिति बनवा कर
उसको ततसंबंधी सर्वाधिक्वार प्रदान किये ।
प्रस्ताव |
वि० म॑ं० २००१ माघ कृष्णा ४ को स्थान सुमेरपुर, भरी वर्द्धणाव जैन बोडिंग द्वाऊस में श्री पीरवादु-संघ-
समा के द्वितीय श्रधिवेशन के अवसर पर भ्रीमान् शाह ताराचन्द्रजी मेवराजजी पावानित्रासी द्वारा रक््खा गया
प्राग्याय्ज्ञाति के इतिक्षस को लिखाने का प्रस्ताव यह समा सर्वश्षम्मति से स्वीकृत फरती हैं और यह विचार
करती हुई कि वर्तमान संतान एवं भावी संतानों को स्वस्थ प्रेरणा देने के लिए प्राय्याट्ज्वातीय पूर्वजों का इतिहास
लिखा जाना चाहिए, जिम्तप्ते संध्ार की दृष्टि में दिनोदिन गिरती हुई ग्राग्ाठज्ञाति अपने गौरवशाली पूर्वओं का
उज्ज्यल इतिहास पढ़कर अपने अस्तमित होते हुये सर्य को पुनः उदित होता हुआ देखे और बह संसार में अपनी
प्रकाश विस्तारित करे आज माव कृष्णा ४ को थराग्वाट-इतिहास के लेखन-कार्य को कार्यान्िवित फरने के लिए
स्वीकृत प्रस्ताव के अनुसार थी पीराडु-संघ-सभा की जनरत्-क्रमेटी अपनी बेठक में चुनाव द्वारा एक सम्रिति छा,
निम्नगद् निर्माण करती है |
१--शाह ताराचन्द्रजी मेघराजजी, पावा प्रधान
२--,, सांगरमलजी नलाजी भाइलाई. सदस्य हे
३-- $ झेन््दनमलजी ताराचन्द्रजणी, . बाली डे
४-- » सुलवानमलजी संतोपचन्द्रजी, ,, हा
५-- ), दिम्मतमलजी इंगाजी विज्ञापरु ,
उक्त पाँच सज्जनों की समिति बनाकर उसका श्री त्राखाटइतिदास-प्रकाशकू-समिति नाम रक््या जाता है
सथा उसका फार्याश्य सुमेरपुर में खोला जाना निश्चित करके तनरल-फमेटी उक्त समिति को इतिद्यास-लेखन-
सम्बन्धी व्यवस्था करने, कराने का सर्वाधिक्वार देती है तथा आग्रह करती है कि इतिद्ास लिखाने का कार्य तुरंत
चालू करवाया जाय । इस काय के लिये जो आायिक सद्दायता अपेदित होगी, उसका मार ओ्री पौरवाइ-संघ-सभा धर
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