मलिक मुहम्मद जायसी और उनका काव्य | Malik Muhammad Jayasi Aur Unaka Kavya

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Malik Muhammad Jayasi Aur Unaka Kavya by शिवसहाय पाठक - Shivasahaya Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तोवनो ११ है ।' जायसी के अध्ययन की गहराई के दष्टिकोण से शुवव जी वी “भूमिरा! आग तक हुए जायसी-विपयक अपययना म मूध व है। शुक्ल जी इत 'पदमावत' की प्रम-पद्धति, वियोग-पक्ष सभोग-श्गार वस्तु-नणन भाव-व्यजना अलवार, स्वभाव-चित्र ० और जायसी की भाषा आदि की महत्ता आज भी ज्या वी यों है । आज तक वे जायसी के आलोचक और हिंदी के इतिहासकार शुवल जी वे ही वाक्या को हे्‌र-फेर वर वे प्रस्तुत कर दने म अपनी इतिक्तव्यता समयते हैं । यह अत्यन्त सुस्पष्ट तथ्य है कि शुक्‍्त्र जी बे पश्चात उपयु क्त विषयां पर विद्वाना ने जो कुछ भी लिखा है वह या तो शुउल जी वे मतां का पिष्टपेषण है या मात अनावश्यक विस्तार । यह अवश्य सत्य है कि विशिष्ट सामग्री वे अभाव म प्रमगाथा की परपरा जायसी वा जीवनवत्त, पदमावत वा एतिहासिए' आधार जायसी का रहस्यवाद आदि विपयक शुवलजी के मत पूण नही कह जा सकते । शुवलजी वे परवर्ती विद्वाना ने इसी ओर प्रवर करने का साहस भो किया है। १८२५ ई० म बावू सत्यजीवन वर्मा वा आखूुयानव काव्य! लीपक एक ६० पृष्ठा का लेख प्रकाशित हुआ | इस लेख म उहाने उस समय तक के प्राप्त हुय बीस प्रमाख्यानकः काव्या वा उलेख वरते हुए जायसी, कुतवत और भसन का परिचय भी दिया था। डा० श्यामसु7रदास जी ने १६३० ई० म हिंदी भाषा और साहित्य नामऊ ग्रथ प्रकाशित किया । इसम उहहाने प्रेममार्गी भक्तियाखा' नीपर वे आतगत जायसी और उनके तीन ग्रथा का तगभग एवं पृष्ठ मे परिचय दिया है ॥ ऐतिहा स्िक दष्टि से यह परिचय महत्वपूण है । प० चद्रवती पाण्डय ने १६.० ई० म सरस्वती मे अखरावट वा रचना बाल शीपषव निवाथ प्रकाशित कराया था। उदाने विद्वतापूण त्कों और अन्त साक्ष्या वे आधार पर अख़रावट के निर्माणकाल की विवेचना वी है। स० १८८८ (१६३६१ ६०) म ना भ्र० पत्रिका! म प० च॒द्भवली पाण्डेय का पदमावत बी लिपि और रघना काल” झीपक लेख श्रवाटित हुआ । पाडेयजी वा प्रस्ताव है वि * रचनावाल विषयक मतभंद दो और चार का ही है । कवि ने पदमावत व्धी जिपि मे ही लिखा था | हमारी समय सर उसका आरम्भ ६२७ हिजरी म हो गया था । पदमावत का रचनावात ६२७ हि० से ६४७ हि० तब ठहस्ता है। * वे १४४० १- प० हजारीप्रसाद द्विवदी डिंदी साहित्य वो भूमिका प० ६६-६६ ॥। २- नागरी प्रचारिणी पत्रिता कागी भाग ६॥ हि ३- डा० श्यामसु-दरदास हिन्दी भाषा और साहित्य पृ०२८४ (ह्विंण्म० १६६४) । ४- सरस्वती, प्रयाग १६३० ई०। | ना०प्र० पत्रिका कायी भाग १२,स० १८८८ (जेस३), ५० १०१-१४५। ६- वही पृ० १४९-४२॥




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