आदिदैविकाध्याय | Aadidaivikadhyay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)|| श्री: ॥
%# निवेदन
» ३, 5023.52 84 «-
इस आधिदेविकाध्याय ग्रन्थ के प्रकाशन काये को प्रारम्भ करने के छुछ दही दिन बाद
में अरवत्य होगया जिससे इसका संशोधन भल्नी प्रकार न हो_ सका । यहां # प्रेसों के
विषय मे पह्विले भी में अन्य ग्रन्थों की भूमिका में लिख चुका हूँ कि वे हस ओर विशेष ध्यान
नहीं देते हैं ।
मेर। स्वास्थ्य अध अधिक बिगडते लगा तब मेंने यह कार्य भार स्वामी सुरजनदासज्ञो
को सौंप।, यदि »रम्भ से ही उनके हाथ में दिया ज्ञाता तो इतनी गड़-बढ़॒ या विलम्ब भी
नहीं होने पाता, परन्तु यह क्या मालूम था हि मेरा स्वास्थ्य इतना खराब हो जायगा । अस्तु
अब जसा कुछ द्वो सका वह पाठकों के समत्ष रखा गया है । एक शुद्धि पत्र भी लगा दिया
गया है तथापि पाठकऋवृन्द् जा त्रुटि देखें उसे ठीक करने की उदारता करें ।
उक्त स्वामीजी का में बड़ा कृतज्ञ हैँ कि उन ने अपना अमूल्य समय देकर मेरे इस
काय में ह/थ बटाथा है। यह मेरे पूज्य पिताजी के शिष्य तो हेंही मुक पर भी इनही
अनुपम कृपा रहती चकी आती है' ।
मेरा स्वास्थ्य क्रमशः ठीक होरहा है परन्तु अभी तक मैं इस सेबा के योग्य हुआ नहीं
हूँ अतः जब तक मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं होता है यह कार्य मैंने स्त्रामीजी के ह्वी निरीक्षण में
रक्ज्ा है | मुझे यह पूर्ण आशा है कि इनकी देख-रेख में विशेष त्रुटियां नहीं रहने पायेंगी।
प्रस्तुत प्रन्थ को भूमिका में स्वामीजी ने सरल हिन्दी भाषा में इस प्रन्थ के विषयों
को अनुवाद रूप में स्पष्ट करने का प्रयत्न रिया हैं जिससे सर्वेसाधारण को समभने में भीं
कठिनता न होगी। आपने इस कारये में बड़ा परिश्रम कर इस ग्रन्थ को बढा उपयोगी वना
दिया है ।
पृज्य पिताजी ने शास्त्रों के ढन विषयों का जिनका कि रहस्य क्रमशः लुप्तश्ाय होगया है
ओर जिनका आधुनिक व्यक्ति प्राचीन समय की परिभाषाओं व शेली को न जानने के कारण
आधुनिक तरोके को अपना कर अन्यथा व्याख्यान करते हैं, अतः यथाथे विषय को थे जान
कर उन्हें झसम्भव व सन्देद्ास्पयद मान बेठते हैं , उनका बास्तथिक रहस्य बतलामे का पूरो
प्रयन्न किया है | जितने भी प्रन्थ लिखे गये हैं वे सब सश्कृत में हैं । अतः हनका जब तक
हिन्दी भाषा में अनुवाद न कर दिया जाय तब तक वे संस्कृत के विद्वानों के अतिरिक्त सभे
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