विज्ञान के सन्दर्भ में जैन धर्म | Vigyan Ke Sandarbh Men Jain Dharm
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भटट को भेजा गया ।
डॉ० भट्ट ने अगम्य विपाणु के विकास व उससे सुरक्षा के उपाय ज्ञात करने
के लिए वेलूर ग्राम के जन-स्वास्थ्य का सर्वेक्षण किया | यह ग्राम वकियम नहर के
पास है। इसी नहर के पास 'कल्पकम्” आणविक आटोमिक पावर-स्टेणन है । नहर
में 'म्यूस्सेल' नामक मछलियां मिलती है।
डॉ० भट्ट ने जब इन मछलियों की शास्त्रीय जाच की तो मछली के शरीर-
कोप में विप-कण पाये । वेलूर ग्राम के लोग अपने आहार में अकसर म्युस्सेल
मछलियों का उपयोग करते है । डॉ० भट्ट ने पाया कि स्युस्सेत मे विप नहर के
दूषित जल से आया हुआ था ।
यह भी पाया गया कि 'कल्पकरम्! आणविक रिएवटर से उत्पन्न रेडियोधर्मी
दूषण से जल दूषित नही हुआ था वल्कि कल्पकम् की कालोनी में लोगो का
समप्त मल वकियम नहर में विसर्जित करने की जो व्यवस्था हैं वह वेलूर ग्राम
के लिए अभिशाप हो गयी थी। इस मल से ही नहर का जल दूपित हुआ और
मछलियों में विष पहुच गया ।
ज्योलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एक अनुसधान शाखा मद्रास मे है।
इसमे कार्यरत वैज्ञानिक डॉ० डेनियल ने हाल ही मे अपनी रिपोर्ट में कहा है कि
पूर्वी तथा पश्चिमी तट के नागरिको के स्वास्थ्य के लिए खतरा वढ रहा है।
उन्होने अपनी रिपोर्ट मे स्पष्ट किया है कि बड़े बदरगाहो के समीप
तेलवाहक जहाज से जल-दृषण की मात्रा मे अत्यधिक वृद्धि हो रही है। प्रायः
जहाज के टैकरो से पेट्रोल, क्रड आयल व अन्य प्रकार के तेल सागर मे बहाये
जाते हैं।
रिपोर्ट कहती कि बम्बई, मद्रास व कलकत्ता में बिकने वाली मछलियों में
विप तत्त्व पाये गये है । इससे लोगों मे कैसर का प्रसार हो रहा है | तेल से दूपित'
जल में छोटे जीव-जन्तु पलते है, जिन्हे मछलिया अपना भदय बनाती है। फलत:
ऐसी मछलियों में धीरे-धीरे एक प्रकार का नैसगिक विप तत्त्व बनता है जो
मछलियों के स्वारथ्य के लिए नहीं, परन्तु मनुप्य के लिए अत्यन्त घातक है।
डॉ० डेनियल ने अपनी रिपोर्ट मे बह भी सकेत दिया है कि प्रतिवर्ष लगभग
६७०० लाख गगन घरेलू एवं अस्पताल का मल भी सागर में विमजित होता है
जिससे सागर शे जल-दूपण बटा है ।
नेशनल इन्सटीट्यूट ऑफ ओजनोग्राफी (गोवा) के एक वैद्यानिदा दल ने हाल
ही में अपनी रिपोर्ट मे कहा है कि पूर्वी तथा पर्चिमी तट के सागर-जल का
वे
ड्प 1४ पतटोय से चच्ते झइद्योग नप्टान के विद्य तपू $:ल् ८४३: 775
अद्रपण तटीय में बदते उद्योग प्र तिप्ठानो को विद्य तपूरत्ति करने के लिए धर्मल
कक
दर स्टेगनों की संख्या में वड्धि की देन है। धर्मल पॉवर स्टेणनों े
पराधर र्टााना का सख्य म वाद्ध का दन हैं । धमल पाँवर स्टेणनों मे सागर
कं हा का
जैन धर्म और प्रदूषण १७
User Reviews
rakesh jain
at 2020-11-25 09:44:40