शरणागतिरहस्य | Sharanagatirahasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्म विभीषणन स्थेष्ट त्राताकों क्यों छोड़ा ”/ २१
अब जो यह कख्ड व्याया जाता दे कि शा|ज्यक्री छाछ्सा-
से रामके पास गये यह भी रामायणसे तो सिद्ध नहीं होता |
शहरणागतिके समय त्यक्त्वा युत्रांश्व दार्गश्व राघव झरणं गतः'
( में ज्री-पुत्रादि सव कुछ छोड़कर श्रीगमचन्द्र्त्षी शरणमें आया
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है) यों अन्य विपयका वेराग्य खबं विमीपण कण्ठरवसे कहते हैं |
वल्क्ति जिस समय श्रीरामचन्द्रकी झरणम जाकर प्रार्थना करने
बे, उस समय यहां कहा कि में तो सवविध पुरुषार्थ आपम ही
समर्पण कर चुका ह | आप ही मेरे राज्य हैं| आप ही मेरे
जीवित हैँ | आप ही नेरे सुख हैं | में तो छट्ला, सुद्त, सम्बन्धी
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तथा व्नादि सत्र कुछ छोड़ चुका हूँ ।
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पिरित्यक्ता श्या छक्का मित्राणि तर घनानि अञ |
अवहनत में राज्यं थे जीचित त्व छुखानि च ॥!
फिर यह किस तरह कहा जाय कि राज्यक छोससे वह
श्रीगमकके पास गये थे ओर यह पहलेसे माद्धम भी कहाँ था कि
श्रीरामचन्द्र जाते ही मुझे छड्ठाका राजा ही बना दंगे | उन्हें ते
अपने अद्ञीकार कर झेनतकदकी फिक्न पढ़ रही थी |
हाँ, यह जरूर है कि विभीषणके नहीं चाहनेपर भी
भगवान श्रीरामचन्द्रने विना सोच-विचारके ही उन्हें छड्टाका राज्य
दे दिया था | वात यह थी कि-विभीषणके पहुँचनपर भगवान्
श्रीरामन बातचीतका ग्रसद्ठ छेडकर विभीपणकी शड्आाको हटाना
चाहा था | इसब्यि वे उनसे ठड़्ढा ओर राक्षसोंका बृत्तान्त पूछने
ठगे । विभीपणने एक-एकका ऐसा प्रमाव दिखछाया कि जिसकी
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