गौविन्दवैभवम | Govind Baibhawam

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Govind Baibhawam by भट्ट मथुरानाथ शास्त्री - Bhatt Mathuranath Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० गोविन्दवेश्वम्‌ जिनके पद-कमलके मकरन्द-विन्दुकी मधुरताके साथ चन्द्रमाके अमृत- निहरकी भी समता नहीं हो सकती) जिन्होंने संसारबन्धनमें पड़े हुए पापियोंका मी उद्धार कर दिया) वे ही हरि दोषोंके कारण क्या इस दीनपर प्रहार करेंगे ! हे मज्जुनाथ ! तू मूर्ख है, संशयित-चित्त क्यों हो रहा है ! में तो यह समझकर इस छोकमें स्वच्छन्द विहार करता हूँ कि जिनके चरणारविन्द सब प्रकारके सुखसमूहोंकी वृद्धि करनेवाले हैं, वे गोविन्द अथाह भवसागरसे मेरा उद्धार कर देंगे | ११ ॥ गोणं गृणन गोविन्दस्थ गुम्फितगुणानवाद- मन्यप्रास्यगीतान्येव._ गायसि. गुरुखरे साधुखरमाधुरीमुपायसि पिकस्वरेषु वेणुरवे विष्णोने तां विन्द्सि विकखरे। मज्जुनाथ मधुस्मुदीक्ष्य मोदमानो यासि दृष्टि ल ददासि सुदा जातु जगदीश्वरे साधारणसोख्यक्रते मा धावखर मूढ ! मुथा राधारमणाह्िकजमाधारीकुरुष्व रे ॥ १२॥ गुम्फितं कवितया निबद गोविन्द्स्य गुणालुवादं गोणं यथा स्थात्तथा गृणन्‌ गायन्‌ त्वस्र अन्यानि आमस्थगीतान्येव_ नायिकानगरवण्णे- नादीनि गुरुखरे मह॒ति खरे गायसि । कोकिलस्वरेषु उत्तमस्वरस्य माधुयेस्‌ उपायसि ( रूससे जानासि वा ) । विकसखरे विकासशालिनि कृष्णस्य वंशीरवे ता माधुरी न विन्द्सि | मधुरं किल्लिदपि वस्तु वीक्ष्य असन्नस्त्व॑ तत्समीपे यासि, जगदीश्वरे ( यो हि माधुयाणां परा काष्ठा ) तस्मिन्‌ दृष्टि न ददासि ॥ १२ ॥ गोविन्दके गुणानुबवादकों गौणैमावसे गाते हुए तुम अन्य ग्राम्यगीतौकों ही ऊँचे खरमें गाते हों | कोकिलके खरमें स्व॒स्माधुयं समझते हुए तुम विष्णुके विकासशाली बंशीरवमें कुछ भी माधुय नहीं पाते | हे मज्जुनाथ ! ( आपात-) मधुर बस्तुको देखकर तुम बड़ी प्रसन्नतासे उसके समीप जाते हो; किंठु जगत्‌के स्वामीकी ओर हृष॑पूर्ण इृष्टि कमी नहीं डालते । मूह !




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