मध्य पहाड़ी का भाषाशास्त्रीय अध्ययन | Madhya Pahadi Ka Bhasha Shastriy Adhyayan

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Madhya Pahadi Ka Bhasha Shastriy Adhyayan by डॉ गोविन्द चातक - dr. Govind Chatak

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श्री धाम सिंह कंदारी और चंद्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ गोविन्द सिंह कंदारी का जन्म उत्तराखंड के कीर्ति नगर टिहरी गढ़वाल के ग्राम - सरकासैनी, पोस्ट - गन्धियलधार में हुआ |
शुरुआती शिक्षा इन्होने अच्चरीखुंट के प्राथमिक विद्यालय तथा गणनाद इंटर कॉलेज , मसूरी से की |
इलाहबाद (प्रयागराज) से स्नातक कर आगरा विश्वविद्यालय से पी.एच.डी कि उपाधि प्राप्त की |
देशभर में विभिन्न स्थानों पर प्रोफ़ेसर तथा दिल्ली विश्ववद्यालय में प्रवक्ता के रूप में सेवारत |
हिंदी भाषा साहित्य की नाटक, आलोचना , लोक आदि विधाओं में 25 से अधिक पुस्तकें लिखीं |

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गढवाली बोली गढवाला मध्य पहाड़ी के जतगत आती है। ग्रियसल ते नारतीम आय भापाआ का विभाजन करते हुए मय पहाड़ी वी रियति मीतरी उपयाखा म निर्धारित का है।' दाठ मे डॉं० सुदीतिवुमार चादुज्यों ने प्रियसत वी स्थापना से मतभेद प्रर्द बरसे हुए मारतीय जाय भाषाओं का बर्गोक्रण बहुत कुछ जपने दंगे से अव्य किया पर पहाड़ों भाषाआ के सम्बाध मे उतकी सूफ़ प्रियसन से जाये नहीं बढी | उन्हान भी उाह दरद अयश खश प्राइत से सम्दीबत बताकर और अध्यकाल मे उन पर राजस्थान की प्रात औौर अपभ्रश्ञ का प्रभाव घोषित कर अपन वक्तव्य को इतिश्रो कर दी ।' तद से हिन्‍्टी म यट परम्परा बड़सुल-सी वर्षो से हिंदा के विद्वाना के बाच निवाघ रुप से निभाइ जा रही है । प्रियसन वे वर्गोतरण वा आधार हातल को स्थापनाएं थी।' जाधुतिक जाम भाषाओं वे सूक्ष्म जययत्र २ पश्चात वे इस निणय पर पहुंचे थ कि आय भारत में कमन्से-क्स दा बार आए और नवायत जायों के जात के कारण पूवागत आरयो को पूध दरलिण और प्रश्चिम मं फठना पड़ा। ग्रियसतन ने इसी सिद्धास्त का उपयोग करत हुए अपना वर्भीकरण प्रस्तुत किया था। डा० चादुज्या का वर्गीकरण भौगों लिव' है और व बाहरी और नातरी उपयासा वाद विचार का समयन नहीं करते। कितु स्वय डा० चादुज्या नी इस बात फो सानत हैं कि भारत से आरयों की अनेक आखाएं प्रजा करती रही और प्रत्येक राजा की यो वी की अपनी विशेषताएँ थी।* प्रियसन की धारणा एकदम अविचारणाय नही है ! गेढवाल के कुछ विद्वाता ने भी इस आर समत क्या है कि आयों के एक दर ने सढगान से होबर प्रवेश दिया झा और उाहोन वहाँ अपनी बस्तिया भी वसाई थी। ये ततम्य मापा की दृष्टि सं बहुन महत्त्वपूण ठहरत हैं। चस्तुत , मध्य पहाडा के बार मे विद्वात द्वारा प्रस्तुत स्थापनाएँ भ्रामक है ! दूसरी बात पहाड़ी मापाआ के सम्ब व से डॉ ० चाटज्यों की एक और विचित २ लिन्विकि के स्रे आँव दिया अछ 2३, ९० १२०१ # श्रोरिनित एग्ड ढेवरप्रमन्‍्ट आव बैंगाल लैंग्पेत, ए० ६ 1 डम्दन हि झेमर, भूमिका पृ० ३९) ४ मरनाव अयमापा भर दिच्दा, पू० ०३ ६




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