कल्याण [वर्ष ७७] | Kalyan [ Year 77]

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Kalyan [ Year 77] by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'किड्लिणीमझुलं दर त॑ं भजे' अच्युतं. केश रामनारायणं कृष्णदामोदर॑ बासुदेव॑ हरिम्‌। श्रीधर॑. माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे॥ १॥ अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं . श्रीधर॑ राधिकाराधितम्‌। इन्दिरामन्दिरं.. चेतसा. सुन्दर देवकीनन्दन॑ नन्दजं. संदधे॥ २॥ विष्णवे जिष्णवे शडह्धिने चक्रिणे सुक्मिणीरागिणे जानकोजानये। वल्लवीवल्लभायाचबितायात्मने . कंसविध्वंसिने वंशिने ते. नमः ॥ ३॥। कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे। अच्युतानन्त. हे... माधवाधोक्षज.. द्वारकानायक .... द्रौपदीरक्षक ॥ ४ ॥ हि सीतया. शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारण: । लक्ष्मणेनान्वितो वानरै: सेवितोगस्त्यसम्पूजितो राघव: पातु माम्‌ू॥ ५॥ धेनुकारिष्टकानिष्टकृदू.. द्वेषिहा.. केशिहा.... कंसहद्रंशिकावादकः । पूतनाकोपक: सूरजाखेलनो बालगोपालक: पातु मां. सर्वदा॥ ६॥ विद्युद्द्योतबत्प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोद्वत्प्रोल्लसद्विग्रहम्‌। वन्यया मालया शोभितोर:स्थलं लोहिताडब्रिद्वयं॑ वारिजाक्ष॑ भजे॥ ७ ॥ कुद्धितै: _ कुन्तलैभध्रजिमानाननं रत्ममौलिं _ लसत्कुण्डलं॑ गण्डयो: । हारकेयूरकं कड्णप्रोज्न्चलें॑ किड्लिणीमसुलें. श्यामलं ते भजे॥ ८ ॥ अच्युतस्वाष्टक॑ य: . पठेदिष्टद॑ प्रेमत: . प्रत्यह॑ं. पूरुष: सस्पृह्म्‌। वृत्तत: . सुन्दर कर्तृविश्वम्भरस्तस्य. वश्यो हरिजायते सत्वरम्‌॥ ९॥ ॥ डति आऔसच्छड्टराचार्यकृतपच्युताहकं सम्पूर्णप्‌ # अच्युत, केशव, राम, नारायण, कृष्ण, दामोदर, वासुदेव, हरि, श्रीधर, माधव, गोपिकावल्लभ तथा जानकीनायक श्रीरामचन्द्रजीको मैं भजता हूँ ॥ १ ॥ अच्युत, केशव, सत्यभामापति, लक्ष्मीपति, श्रीधर, राधिकाजीद्वारा आराधित, लक्ष्मीनिवास, परम सुन्दर, देवकीनन्दन, नन्दकुमारका मैं चित्तसे ध्यान करता हूँ॥ २॥ जो विभु हैं, विजयी हैं, श्भ-चक्रधारी हैं, रुक्मिणीजीके परम प्रेमी हैं, जानकीजी जिनकी धर्मपत्री हैं तथा जो व्रजाज़नाओंके प्राणाधार हैं उन परमपूज्य, आत्मस्वरूप कंसविनाशक, मुरलीमनोहरको मैं नमस्कार करता हूँ. ॥ ३॥ हे कृष्ण! हे गोविन्द! हे राम! हे नारायण! हे रमानाथ। हे वासुदेव ! हे अजेय! हे शोभाधाम! हे अच्युत! हे अनन्त! हे माधव! हे अधोक्षज (इन्द्रियातीत) ! हे द्वारकानाथ! हे ट्रौपदीरक्षक! (मुझपर कृपा कीजिये) ॥ ४ ॥ जो राक्षसोंपर अति कुपित हैं, श्रीसीताजीसे सुशोभित हैं, दण्डकारण्यकी भूमिकी पवित्रताके कारण हैं, श्रीलक्ष्मणजीद्वारा अनुगत हैं, वानरोंसे सेवित हैं और श्रीअगस्त्यजीसे पूजित हैं; वे रघुवंशी श्रीरामचन्द्रजी मेरी रक्षा करें ॥ ५ ॥ धेनुक और अरिष्टासुर आदिका अनिष्ट करनेवाले, शन्रुओंका ध्वंस करनेवाले, केशी और कंसका वध करनेवाले, वंशीको बजानेवाले, पूतनापर कोप करनेवाले, यमुनातटविहारी बालगोपाल मेरी सदा रक्षा करें ॥ ६ ॥ विद्युत्पकाशके सदृश जिनका पीताम्बर विभासित हो रहा है, वर्षाकालीन मेघोंके समान जिनका अति शोभायमान शरीर है, जिनका वक्ष:स्थल वनमालासे विभूषित है और जिनके चरणयुगल अरुणवर्ण हैं; उन कमलनयन श्रीहरिको मैं भजता हूँ ॥ ७॥ जिनका मुख घुँघराली अलकोंसे सुशोभित है, मस्तकपर मणिमय मुकुट शोभा दे रहा है तथा कपोलॉपर कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं; उज्ज्वल हार, केयूर (बाजूबन्द), कड्लण और किड्लिणीकलापसे सुशोभित उन मजुलमूर्ति श्रीश्यामसुन्दरको मैं भजता हूँ ॥ ८ ॥ जो पुरुष इस अति सुन्दर छन्दवाले और अभीष्ट फलदायक अच्युताष्टकको प्रेम और श्रद्धासे नित्य पढ़ता है, विश्वम्भर, विश्वकर्ता श्रीहरि शीघ्र ही उसके वशीभूत हो जाते हैं ॥ ९ ॥ अल! रू अस्टकसकल १ के /वस्ल




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