रम्य रास | Ramya Raas

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Ramya Raas by राजा चक्रधर सिंह - Chakradhar Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झि ससार कठाक्ष मात्र से विम्ुग्ध होता जब एक बार ही । कहो कहें क्‍या कितनी श्रनूप थी ललामता मजुलता रसालता ॥१३१॥ कक आकपंण निकुंज कूजे, हँसने लगी धरा समागमेहासमय भानुजा . हुईं। अनन्त श्राकर्पण-घाम क्‍यों न हों कहे गये कर्पण से सुकृष्ण जो ॥१श॥




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