उत्तर | Uttar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[४४
+जहेश से देविन्ने देवराया सुदुमकाय अंणि जूद्दित्ताय
भास॑ भासड ताईण सके देविस्दे टेवसया सायज्ज मास भासइ,
जाहेण रुफे देगिस्दें देवगया सुददपफाप शिजूहित्तारा भास
भासइ ताहेश सपे देविन्दे देश्शाया अणवज्ज॑ भास॑
भासट्ठ”? अंथीतु -- शपेन्द्र अपरे मुह पर बस्र थांपे बिया यानी सुह
के यखस्त्र लपेट बिना थोते तो बढ़ सावथ भाषा है ऐसा संगवान ने पंरमाया
है। यदि वह इन्द्र मुह पर कपड़ा याघकर या लपेटकर घोले तो यह नि-
यंदय भाषा आ्थोत् इस प्रकार घातने में हिसा नहीं होती है।” इससे
निर्षियाद सिद्ध है. कि साधुओं को हमेशा गुँद पर सुंदपत्ति यापना
उचित € सर
आगे चलफर दणश्डीजी उसी पछ में लिएते हैँ कि “इन्द्र फे अरधि-
कार बाले पाठ स मुँह पर बाधने का अर्थ निफायोग मो इस्द्र के भी
चांधने पा ठहर जायेगा ।”? 51 का
+
दंगडीजी ! भगवान ने तो पहिले ही फरमा दियों कि “खुले भेद
ले'तो सायथ्र भाषा है और धरस्त्र पेट फेर था बाघफर घींले तो निर्बध
भाषा है 7” स्वास इन्द्र के प्रसग पर ही ऐसा फरमाया तो क्या इन्द्र
भगयान के वाक्य फा उनधन केर देगे ९
» जय ? इन्द्र भक्ति क निये आयगे तब २.चस्ध बांधकर या लपेट
यर ही बोलेंगे। ऐसे ही अतीत, अनागत और वर्तमान के इन्द्र अपने .२
समय में उपरोक्त विधि के साथ ही तोर्थर गे से बाज़ालाप करेंगे। इससे
सिद्ध है कि साधुओं को मुँट पर मुँहर्पति बाधने की प्रणाली नवीन नहीं
पर शाखानुकूत भ्राचीन है । यदि दरंडीजी कहे कि “जिर्स प्रकार इंन्द्र
बस्तर लपेंट लेते हैं उसी प्रकार'साधुआ को भी लैपेट लेना चाहिये” “तो
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