महाभारत भाग - 13 | Mahabharat Bhag - 13

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Mahabharat Bhag - 13  by गंगाप्रसाद शास्त्री - GANGAPRASAD SHASTRI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय ३ ] करण पर्व ६ के, ४ |ाओ जै)5७५७० क०_ा३ 2१ 8.७ /०६..०३..#' लीक, लोग, पराक्रम शाली और अख्तर विद्या में कुशल ही-आज अपने २ पराक्रस को तुस परस्पर स्वयं देखोगे ॥१६॥ सल्लय उवाच--- एचप्ुक्‍त्वा ततः कण चक्र सेनापरतिं तदा । तब पुत्रो महावीयों श्रातृभिः सहितोडनथ ॥१७॥ सझ्लय ने कहा--हे अनघ ! इतना कहकर महा पराक्रमी राजा दुर्योधन ने अपने भाइयों की राय से कर्ण को सेनापतति चना दिया ॥१०॥ सेनापत्यमथाध्वाप्य कर्णो राजन्महारथः । सिंहनादं विनय्ोच्च; प्रायुध्यत रणोत्कट ॥१०८॥ है राजन्‌ ! सहारथी कर्ण भी सेनापति पद को पाकर सिंहनाद करने लगा और रण में बड़ा उत्कट होकर भिड़ गया ॥१८।॥ स रुज्जयानां सर्वेषां पश्चालानां च मारिष केकयानां विदेहा्नां चकार कदनं महत्‌ ॥१६॥ हे आये! इसने सञ्जय, सारे पद्चलाल, केकय ओर विदेह राजाओं की सेना का बहुत ही विध्वंस उड़ा दिया ॥१६॥ तस्येषुधारा: शंतश॥३ प्रादुरासञ्छरासनात्‌ । अग्रे पुद्ढेषु संसक्ता तथा अमरपंक्तयः ॥२०॥ इस कर्ण के धनुष से बाण धारा इस प्रकार ,चल निकली कि एक बाण के मूल से दूसरे बाण की. नोक मिलती चली गई, जो अमर पंक्ति,जैसी प्रतीत होती थी .॥२०॥




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