स्वामी दयानन्द सरस्वती का निजमत | Swami Dayanand Saraswati Ka Nijamat

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Swami Dayanand Saraswati Ka Nijamat by गंगाप्रसाद शास्त्री - GANGAPRASAD SHASTRI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ < + पर्णक श्रन्तके एलोकोये कटी जायुकी ( सण १२ रतै ५८) उसका पुनस्त दोषते वणन करना राद्धिखाव्यको दूषि करना है प्रतपव चतुदश सभं प्रक्लिप्त ही समम्पना चाहिए- प्रत्येक मनुष्य जानत्ता है क्वि राजा दशरघ पुति यक कर रहेथे पु्रेप्टि यज्ञम झश्व मारकर हवन करना किसीमें भी नहीं माना है-झोर न श्रश्वप्रघ पुत्र प्टि यज्षका कोई अंगही है “महाभारत के बनपथ में रामोपास्यान हैं उसमें समस्त रासचारित हैं परन्तु बहा रामचन्टरजी कै जन्मके न्तियि आशिष्ये दर कागद पुरि का वणन नहीदं ' ( महा० मीमासा० पृण २५ । तच श्रषएवमार करर हवन करने का प्रकरण *४सें सर्ग द्वारा मिला दना किसी घर्मद्रोहों दुरात्ता के दुरूलाहू नके सिवाय ऋर कया कह सकत हैं यज़ुबंद्म स्पष्ट लिखा है-- योउवन्त॑ जिघांसति त८भ्यमीति वरुण: परी मत्त! पर: ; श्वा (यजुर्बद्‌ ८२।५)याो ऽकेन्तःश्वं जामते हन्तुपच्छनिं चरूणाः तपश्‌ (नव्रासन्नपरन्ययान रस स्म सठापर मपाष्य | जो श्रवन मारना चाहता है उप चस्या म करका) शोर चह मनु रकन इते तर्‌ पमान हस्ता हैं सके श्रतिरित्द शास्त्रों एफ गो , शब्द छाल थि का एसपए चाची श्राता ऐ-उपका झध भी इन वास दाकोने “गांहु स्तियस्मों शति गोधः सनिधि। अाधात गाग {तिस सजि मारौ शय उ मोघ्रया श्रतिभशि कते 3-तस्या [दो र -परन्तु यह्‌ इनक) ज्ञान अथवा वक्षन वासिनि निनि श्वामुच रम हन्‌ धानु हिंसा श्र गति ( ज्ञान गमन पापि ; थते लिस्ताएँ इस्ललिए गप्र शस्दक्म अथर मिय जिसको कार! पाप्त को जाय अ्रधथात | रखनी पड़े उसे गोघ्न कहटतदहं परिनि मुधिने स्तयं श्रद्राध्याशः मेलिखा दै “उप्र श्राध्रयेःः (श्रए्ा०२।२।८८) यहं उप शब्दकः




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