स्वामी दयानन्द सरस्वती का निजमत | Swami Dayanand Saraswati Ka Nijamat

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Swami Dayanand Saraswati Ka Nijamat by गंगाप्रसाद शास्त्री - GANGAPRASAD SHASTRI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(हद) देव माने! सरां देव: यत्र बध्येत दे! पशु: (म०शु० ७-८) श्र्थात्‌ यह सज्नोका मार्ग नहीं है कि यम पशुवध किया जाय । कीदानइत्वा पशुन्हर्वा कृत रुधिर्कदूममू | तनेद गम्यत सपग नरक कन सुग्यत्त | कौर पीर पथुमोकों मार कर खूनकी 'हीचड़ करने सेही फोई स्वर्ग जाता हैं तो मरक जानेका झौर कौनसा मार्ग हो सकता है श्रतपब सात्विक यशयांग द्वारा ईश्वर या देवता आकी सुप्ति करनी चाहिए श्रौर इससे श्रास्माकों सदुगति प्राप्त होती है । दूसण एक सार्गहिसानिदुश्तिकां उस समय यह शी दोसकतताथां फिंजिस इंप्वरकी ठूसि केलिए: यश करतेदी बह कोई है ही नद्दीं 'थ्रौर जिस वेदके दिसवाससे करते हो थे वेद्भी मिध्या है यह्याग सथ व्यर्थ हैं जन्मसे ब्राह्मण कोई नहीं हे इससे इन ध्राप्रणाफि उपदेशकों मतमार्नों यह श्रात्सा कोई यस्तु नहीं है जिसे स्वग लेजाना चाहते हों । भगवान, चुद्धने द्वितीय मार् पाही शवलरवन किया शरीर याशिक दिंसाकों संसारसे विदा करदिया | इस दौनों मार्गों शीघ्रतासे हिंसा ग्रचार को रोकने वाला मार्महमारी सम्मतिंमें यही उ्तमथा जो भगधान्‌ दुद्धने स्वीकार किया वर्पोकि प्रथरमार्ग जिसमें वेटाको प्रमाण सानकर यकादि प्रचलित रखक्रे उनसे टिंसाका संशोधन करना चहुत चिलम्ब साथ्यधा और यही कारण थाकि चेदाद्िफे चिरोध वरने पर शो हावालीन इुष्येनिं हु को ईश्वरका डचतार या डचाय माभहिय छोर यह देदादि रुस्टन पी रुपिरिधिका एक श्रार्ली झौर बनाघरी सघन रुमभा गया ।'




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