समग्र भाग - 2 | Samagra Bhag - 2

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Samagra Bhag - 2 by आचार्य विद्यासागर - Acharya Vidyasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(०) धर्म सूत्र पाता सदेव तप सयम से प्रशसा, ओ धर्म मणलमयी जिसमे अहिसा । जो भी विनय से उर मे बिठाते, साननन्‍द ठेव तक भी उनको पुजाते ॥८२॥ है वस्तु का धरम तो उसका स्वभाव, सच्ची. क्षमाठिउडशलक्षण धर्म-नाव । झानादि रत्ननत्नय धर्म, सुखी बनाता, है विश्व कर्म त्रस थावर प्राणि न्नाता ॥८३॥ प्यारी क्षमा, मृदुलता ऋजुता सचाई, आ शौच्य सयम धरो, तपसे भलाई ॥॥ त्याणों परिग्रह, अकिचन गीत गा लो, लो ! ब्रह्मचर्य सर मे डुबकी लगा लो ॥८४॥ हो जाय घोर उपसर्ण नरो सुरो से, या खेचरो पशुगणो जन ठानवो से । उद्दीप्त हो न उठती यदि क्रोध ज्वाला, मानो उसे तुम क्षमामृत पेय प्याला ॥८५%॥ प्र्येककाल सबको करता क्षमा मै, सारे क्षमा मुझ करें नित माणता मै । मैत्नी रहे जगत के प्रति नित्य मेरी, डो वैर भाव किससे ? जब है न वैरी ॥८६॥ मैने प्रमाद वश दुख तुम्हे दिया हो, किवा कभी यदि अनाठर भी किया हो | ना शल्य मान मन मे रखता मुधा मै, हूँ मॉगता विनय से तुमसे क्षमा मै ॥८७॥। समग्र-२/ ६५




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