समग्र भाग - 2 | Samagra Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
700
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(०) धर्म सूत्र
पाता सदेव तप सयम से प्रशसा,
ओ धर्म मणलमयी जिसमे अहिसा ।
जो भी विनय से उर मे बिठाते,
साननन्द ठेव तक भी उनको पुजाते ॥८२॥
है वस्तु का धरम तो उसका स्वभाव,
सच्ची. क्षमाठिउडशलक्षण धर्म-नाव ।
झानादि रत्ननत्नय धर्म, सुखी बनाता,
है विश्व कर्म त्रस थावर प्राणि न्नाता ॥८३॥
प्यारी क्षमा, मृदुलता ऋजुता सचाई,
आ शौच्य सयम धरो, तपसे भलाई ॥॥
त्याणों परिग्रह, अकिचन गीत गा लो,
लो ! ब्रह्मचर्य सर मे डुबकी लगा लो ॥८४॥
हो जाय घोर उपसर्ण नरो सुरो से,
या खेचरो पशुगणो जन ठानवो से ।
उद्दीप्त हो न उठती यदि क्रोध ज्वाला,
मानो उसे तुम क्षमामृत पेय प्याला ॥८५%॥
प्र्येककाल सबको करता क्षमा मै,
सारे क्षमा मुझ करें नित माणता मै ।
मैत्नी रहे जगत के प्रति नित्य मेरी,
डो वैर भाव किससे ? जब है न वैरी ॥८६॥
मैने प्रमाद वश दुख तुम्हे दिया हो,
किवा कभी यदि अनाठर भी किया हो |
ना शल्य मान मन मे रखता मुधा मै,
हूँ मॉगता विनय से तुमसे क्षमा मै ॥८७॥।
समग्र-२/ ६५
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