काव्य - धारा | Kavya Dhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
221
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( र२ )
पाहन महेँ न पतंग बिसारा |
जहँ तोहि सर्वर देहि तू चारा ॥
तड लहि सोग बिछोह कर भोजन परा न पेट |
पुनि बिसरा भा सर्वरना जनु सपने भइ भेंट ॥|
पदुमावति पहू आई. भँडारी ।
कहसि मंदिर महँ परी भमँजारी ॥
सुआ जो उतर देत अहा पूछा ।
उंडि गा पिंजर न बोलइ छूछा ॥
रानी सुना सूखि जिंउए गएऊ ।
जनु निसि परी असत दिन भएऊ ||
गहनहिं गही चांद कइ करा ।
आंसु गगन जनु नखतन्ह भरा ॥
टूट पालि सरवबर बहि त्ागे ।
कल बूड मधुकर उडि भागे ॥
एहिं बिधि आंसु नखत होइ चुए ।
गगन छांडि सरवर भरि उए ॥
छिहुरि चुई मोतिन्ह कइ माला ।
अब संकेत बांधा चह पाला ॥
उंडि यह सुअटा कहूँ बसा खोजहु सखि सो बासु।
दहु हुई धरती की सरग पवन न पावइ तासु ॥
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