गणितनुयोग | Ganitanuyoga

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Ganitanuyoga (part Ii) by कन्हैयालाल - Kanhaiyalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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णितालुयोग का व्वितीय संस्करण और उसका संकनन :-.... (विशेष ज्ञातन्य] जैतागमों में भ्रगोल-खगोल एवं अन्तरिक्ष सम्बन्धी जितने पाठ हैं इसमें उच्त सवके संकलन का प्रयत्न किया गया है | प्रथम संस्करण के क्रम्त में और इस द्वितीय सस्करण के क्रम में सामान्य-सा अन्तर किया गया है। प्रथम संस्करण में सर्वे प्रथम अलोक का वर्णन, बाद में लोक का वर्णन और अन्त में परिशिष्ट थे द्वितीय संस्करण में सर्व प्रथम लोक का वर्णन, बाद में अलोक का वर्णन और अन्त में लोकालोक के कतिपय सूत्र तथा कुछ परिशिष्ट हैं । सभी परिशिष्ट श्री विनयमुनिजी ने व्यवस्थित किये हैं । शब्द-कोश श्रीयुत श्रीचन्दजी सुराना ने सम्पन्न किया है | प्रथम संस्करण में समस्त आगम पाठों का अनुवाद डा० श्री मोहनलाल मेहता ने किया था । द्वितीय संस्करण में भी प्रायः डा० मेहता का ही अनुवाद रखा गया है किन्तु वर्गीकरण के अनुसार कहीं-कहीं परि- वर्तन-परिवर्धन-संशोधन आदि भी किया गया है । सम्पादन पच्च॒ति १. भूगोल-खगोल अन्तरिक्ष सम्बन्धी आगम पाठ जो भाव एवं भाषा में साम्य रखते हैं, उनमें से एक आगम पाठ मूल संकलन में लिया गया है। शेष आगम पाढठों के स्थल निर्देश टिप्पण में अंकित किये गये हैं। २. जंनाममों में भूगोल-खगोल एवं अन्तरिक्ष सम्बन्धी कुछ पाठ ऐसे हैं जिनमें एक सूत्र अल्प संख्या सूचक होता है और दूसरा सूत्र वहु संख्या सूचक होता है तो उनमें से बहु संख्या सूचक एक सूत्र मूल संक्रलन में लिया है। शेप अल्प संख्या सूचक सक्री सूत्रों के स्थल निर्देश टिप्पण में दिये हैं। उदाहरण के लिए देखिए पृष्ठ १३, सूत्र २९ के टिप्पण । पृष्ठ १४ पर सूत्र ३० वहु संख्या सूचक सूत्र से भिन्‍न प्रकार का है । अत: ध्रूल संकलन में लिया गया है ३२. संकलित आगम पाठों पर जहाँ १,२ आदि अंक दिए हैं वे सब टिप्पण के अंक हैं । जितने अंश पर अंक हैं उतने ही अंश से साम्य वाले आगम पाठों के स्थल निर्देश टिप्पण में दिये गये हैं । ४. प्रस्तुत संकलन में विषय वर्गीकरण की पद्धति प्रथम संस्करण से भिन्‍न प्रकार की है। इसमें प्राकृतिक स्थिति का क्रम लिया है । यथा-- सर्वे प्रथम अधोलोक, मध्यलोक और ऊध्वंलोक, अधोलोक में नरक, भवन आदि मध्यलोक में द्वीप, क्षेत्र, पर्वत, कट, प्रपात, द्रह, नदियाँ, समुद्र आदि । ऊपर ज्योतिष चक्र के चन्द्र, सूय, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि । ऊध्वेलोक में कल्प, अनुत्तर विमान, ईपत्पाग्मारा पृथ्वी आदि । ५. प्रथम संस्करण में आगमपाठों का मूल ऊपर और नीचे हिन्दी अनुवाद था। इतीय संस्करण में प्रत्येक पृष्ठ पर दो कालम हैं । एक में मुलपाठ और दूसरे कालम में हिन्दी अनुवाद है। मूल पाठ के सामने हिन्दी अनुवाद है इसलिए मूलपाठ के भाव को समझने में पाठक को सुविधा रहेगी । ६. मूल हिन्दी अनुवाद शब्दानुलक्षी है जतः गणित सम्बन्धी प्रक्रिया इसमें नहीं दी गई ५ जो जिज्ञासु गणित की प्रक्रिपायें जानना चाहें वे सूर्यप्रन्नप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति टीका तथा क्षेत्र सममास, लोकप्रकाश भादि प्रन्ध देखें । ७. ज॑तनागमों से सम्बन्धित विपयों पर शोध निवन्ध लिखने वाले अभीष्ट विपय की जानऊारी छीत्र प्राप्त कर भ्रक- इसके लिए मूल पाठ पर प्राकृत के शोप॑ क्र और हिन्दी अनुवाद पर हिन्दी में शीष॑क दिये गए हैं




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