संत साहित्य की लौकिक पृष्ठभूमि | Sant Sahitya Ki Loukik Pristhabhumi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50.24 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमुख . प्रस्तुत शोध-कार्य का. विषय सन्त-काव्य की लौकिक पृष्ठभूमि है । सामान्यतः सन्त-काव्य आध्यात्मिक सन्दर्भ रखता है । इसका सारा दृष्टिकोण पारलौकिक है इसमें व्यापक रूप से झ्राध्यात्मिक जीवन की ही श्रभिव्यक्ति है । धर्म दर्शन श्रौर साधना के इन्हीं पक्षों को इस काव्य में ग्रहण किया गया है | सन्तकाव्य के विषय में इस प्रकार के अनेक अव्ययन इस परम्परा को दृष्टि में रखकर श्रथवा विभिन्न सन्त कवियों के श्राधार पर किये गये हैं । . परन्तु सन्त-काव्य श्रत्तत काव्य है श्रौर इसी कारण उसका हमारे . साहित्य के इतिहास में स्थान है । काव्यात्मक श्रभिव्यक्ति अपने युग-जीवन से सघन रूप से सम्बद्ध रहती है । सन्त-काव्य श्रपने मौलिक श्राध्यात्मिक सन्दर्भ में भी. श्रपने युग-जीवन से श्रलग नहीं रहा है। सन्तों ने वैसे भी श्रपनी समस्त साधना-पद्धति में संसार को त्यागने पर बल नहीं दिया है अ्रत इस काव्य में ऐसे पर्याप्त सन्दर्भ हैं जिनके श्राघार पर इस काव्य की लौकिक पृष्ठभूमि का सम्यक् विवेचन किया जा सका है । बी यहाँ लोक-शब्द को व्यापक श्र में प्रयोग किया गया है लोक-वार्ता लोक-तत्त्व तथा लोक-साहित्य के विशिष्ट अरे में नहीं । प्रथम प्रकरण में इंसी दृष्टि से प्रस्तुत विषय की सीमाश्रों को निर्धारित किया गया है । इसके ग्रनुसार भ्रगले प्रकरणों में सन्त-काव्य में श्राये हुए श्रनेकानेक सन्दर्भों के माध्यम से इस युग के राजनीतिक सामाजिक तथा श्राधिक जीवन एवं प्रचलित रूढ़ियों रींति-रिवाजों प्रथाश्रों और उत्सवों झ्ादि का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है । इस समस्त सामग्री का विवेचन तत्कालीन इतिहास-ग्रन्थों तथा अन्य साक्ष्यों की तुलनात्मक दृष्टि के साथ किया गया हैं। इस प्रकार सन्तों के काल के जीवन के विविध पक्षों को उनके काव्य के श्राघार पर सड्भृठित भ्रोर निरूपित करने का प्रयत्न इस शोध-कांरये में निहित है । शोध-कार्य के प्रारम्भ करने के समय यह दृष्टि रही है कि इस व्याख्या को कालाचुक्रम से रखा जाना चाहिए । परन्तु श्रागे यह अनुभव किया गया कि सनतों की उपलब्ध काव्य-सामग्री के आ्राघार पर इस प्रकार का क्रमिक अध्ययन प्रस्तुत करना सम्भव नहीं है। पहले तो सन्तों के काव्य-ग्रन्थों के
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