आवारा सूरज | Awara Suraj

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Awara Suraj by बाला दुबे - Bala Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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23 'रिसात्दार दारा खाँ फिरंगियों की नोकरी करता है, रारदार, पठान बोला, “बेटा, भाजाद शेर था।' सरदार तुरें याँ हुक्के का कश लेकर बोला, दोनो ने ही फर्ड अदा किया, खान ! बाप ने नमक की लाज रखी तो बेटे ने तलवार की ! हम इसे बहादुरी और जानिसारी की एक मिसाल तस्लीम करते हैं ।” गला खंखार कर मुखबिर बोला, 'सरदार, रिसाल्दार दारा खाँ को दस एकड़ जमीन, खान बहादुर का खिताब, ओ० बी० आई० का तमगा भर पेन्शन भी दी गई।/ “दोक है”, सरदार बोले, “नमक की कीमत आका को देनी हो चाहिए । अव क्या दारा खाँ पेशावर में ही रहने लगा ?” तभी कोने में बैठा विल्‍ले याँ बोला, 'जी नहीं सरदार । आगे की खबर मैं सुनाता हूँ। जिस जगह दारा खाँ का बेटा कासिम गिरा या, वहाँ एक मजार दारा खाँ ने बनवाया है। मजजार पर अपने मंडिल और तसवार रख कर दारा खाँ मे अंग्रेजो को दी हुई उमीन यतीम़ाने को बख्श दी और वह्‌ खूद फ़क्दीर का बाना पहनने लगा है।” सरदार तुरें पाँ ने दोनो हाय ऊपर उठाते हुए कहा, “मुहम्मद रमूल इल्लाह सालहो आलहे वमल्ज्ञम | जब तक हमारे वतन में इस तरह सोह- राबो-रुस्तम पैदा होते रहेगे हमारी गर्दन कभी भी नही झुक सकेगी ।' बड़ा सजीदा माहोल हो गया था | चौपाल पर आए हुए पठानों ने वात का रुख बदला । 'सरदार, फिरगियों की नई राइफल्त हल्की होने के अलावा भार अच्छा करती है। गर्म भी देर में होती है।' सरदार तुरें याँ ने हुबके की नली से मुंह उठाकर कहा, 'जगल में मोर नाचा किसने देखा ! कोई रैफल लाकर बताए तो मश्विरा भी दिया जाएपु।' इशारा रामझ गए सब लोग । अब सवाल उठा कि बिल्ली के गले में घंटी कौन-सा माई का लाल बाँघेगा 1 एक चुप्पी-सी साध ली सब ने । तभी हवीबा सहमे हुए स्वर में बोला, (अगर इजाजत हो अब्दा तो मैं कोशिश करूँ ।/ यह सुनकर तुरें याँ सुश हुआ। बपनी खुशी दवाते हुए बोला, 'हवीवा , ः




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