एक अकेला | Ek Akela
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“२२ / एक अकेला
कारण ही मास्टरजी ने उसका सब खर्च उठाया । तेरह साल की उमर
होते-होते मुन्ना की मजदूरी खत्म हो गयी थी। मास्टरजी के स्कूल की
अड़ाई-पुछाई कर देता, उवका साथ देता और पढ़ाई करता। मास्टर
'जादौराम ने मुन्ना को पाला था। मैट्रिक पास करवा दिया था।
और फिर मुन्ना को लगने लगा था कि वह जादौराम पर बोझ हो
गया है । यही कारण था कि उसने पोस्टमनी करना तय किया । इधर
गांवों में डाक बांटने के लिए आदमियों की ज़ रूरत थी । मुन्ना ने भरती
में अपना ताम भी दिया था। हर दूसरे दिन डाक लेकर आना और पंचा-
'यत इलाके के गांवों में वांदना--बहुत कठिन काम भी नहीं था।
राजनीति में मुन्ता को दिलचस्पी नहीं हो, ऐसा नहीं था | दिल-
चस्पी थी, मगर उपेक्षा वरतता था। जानता था कि उस-जैसों की हैसि-
' यत से बाहर की बात है। यहां-वहां की किताबें पढ़ता। यहां-बहां की
'बहुस भी करता रहता । यदा-कदा जब गांव में किसी को कोई काम
'पड़ता, मुन्ना राय देता | उसकी राय पढ़े-लिखे आदमी की राय समझी
'जाती। मास्टर जादौराम गौरवान्वित होते। लड़का कम पढ़ा-लिखा भले
>हो, पर शिक्षित है । संस्कार भी था उसमें ।
सब कहते-- 'मुन्ता को आदमी बनाया है जादौराम ने। 'मास्टरजी
'जवाव देते--'कोई किसी को कुछ नहीं बनाता भाई, आदमी खुद बनता
है ।' '
बहरहाल मुस्ता--सकूच और धन्ना आदि से कम पढ़ा लिखा होते
हुए भी उनसे ज्यादा समझ का मालिक था ।
पर ज्यादा समझ कभी-कभी घातक भी होती है। मुन्तालाल इस
'समझ से कभी-कभी मार भो खा जाता । एक बार अरजुन ठाकुर को
चौपाल पर ही कुछ कहा-सुनी हो गयी थी । बात चल पड़ी थी--नयी
“कलक्टर सरबती देवी को लेकर । हरिजन थीं। जिले में काम सम्हाला ही _
था कि बड़ी जातवालों में चखू-चख् फैल गयी थी। भरजुन ठाकुर ने भर
“चौपाल पटवारी गदाधर शिवहरे और ग्रामसेवक नत्त्यीलाल शर्मा से कहा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...