योग और शिक्षा | Yog Or Shiksha
श्रेणी : योग / Yoga, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.48 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रधेश करता है उसमें शारीरिक मानसिक परिवर्तन होते हैं इन परिवर्तनों से क्रिशोरो मे उत्तेजना अधिक रहती है। यदि उन्हें इस अवस्था में सावधानी पूर्वक शिक्षा न दी गयी तो उनके मार्म भ्रष्ट होने की संभावना बनी रहती है। इसी काल में किशोर अपने रुचि के अनुसार अपने जीविक्ोपार्जन का क्षेत्र चयन करता है। अतएच माध्यमिक्र स्तर पर दी जाने वाली शिक्षा अधिक सावधानी पूर्वक दी जानी चाहिये। इस अवस्था में यौन शिक्षा और इन्द्रिय निग्रह के सम्बन्ध में अधिक से अधिक जानकारी देनी चाहिये। यम नियम आदि का ज्ञान उनके वास्तविक रूप में कराना चाहिये। प्रकृति पर्यावरण समाज देश आदि के प्रति प्रेम की भावना जाग्रत करना चाहिये। इन भावनाओं को सतत बनाये रखने के लिये समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित क्रिये जाने चाहिये। विद्यालय से दूर स्थानों पर बालकों को ले जाकर शिविर आदि लगाना चाहिये तथा वहाँ रहने वाले स्थानीय लोगों से अधिक से अधिक सम्पर्क बनाने का प्रयास करना चाहिये। समय-समय पर विद्यालयों में महापुरुषों को बुलाकर सभा आदि का आयोजन करना चाहिये। नवयुवकों तथा किशोरों को अपने खाली समय का उपयोग संगीत घित्रकला खेल आदि में करना चाहिये परन्तु यह ध्यान रखे कि जो भी कार्य आप करें पूरे मनोयोग से करें। अपने मित्रों के साथ सम सामयिक विषयों पर चर्चा समाचार फत्रो का नियमित वाचन तथा प्रमुख घटनाओं को स्मरण रखना चाहिये। अपनी दिनचर्या नियमित रखनी चाहिये प्रत्येक कार्य की अवधि निर्धारित करके कार्य करने से व्यवस्था बनी रहती है। मन को एकाम्र रखने का अभ्यास करना चाहिये इसके लिये प्राणायाम और त्राटक आवि का अभ्यास नियमित रूप से करना चाहिये। अपनी स्मरण शक्ति का विकास करना भी अत्यंत आवश्यक है। इसके लिये डायरी लेखन अपनी दिनचर्या का स्मरण करना किसी भी घटना दृश्य कहानी आदि का क्रमबद्ध रूप से सरल शब्दों में व्यक्त करना नये ज्ञान को ग्रहण करना तथा स्मृति में बनाय रखना आदि कार्यों से स्मरण शक्ति का विकास होता है। तात्पर्य यह कि अपने समय का नियोजन इस प्रकार करें कि मन-मस्तिष्क जाग्रत अवस्था में सदैव सक्रिय रहे। मन को सुख-दुःख आदि की कल्पना में कभी न रमने दें हम समाज में रहकर ही अपना विकास करते हैं। भाषा विज्ञान शिक्षा सस्कृति आदि का ज्ञान और विकास समाज से प्राप्त होता है और समाज मे होता हे। यदि इनको प्राप्त करना हमारा अधिकार है तो हमारा कर्तव्य है कि हम अपने प्राप्त ज्ञान को बाँटे। शिक्षा का तात्पर्य है पिछली पीढ़ियों के अनुभवों को आने चाली पीठी को बताना शिक्षा देने और लेने का अधिकार सबको है। देने और लेने में कोई योग और शिक्षा / 17
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