प्रसन्नराघवम् | Prasannaraghavam

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Prasannaraghavam  by शेषराज शर्मा - Sheshraj Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २३ ) प्रश्त करनेपर सरयूने कहा--जब रामने 'सीते ! मेरे वनवासके समयमें तुम अयोध्यामें रहो” ऐसा कहा, तब सीता मूरच्छित हुई' झ्लौर अनेक शीतोपचारसे भी जगी नहीं। जब रासने उनके वनगमनका अनुमोदन किया तथ होशमें जाकर उन्होंने उनका अनुसरण किया । इसी प्रकारसे रामके 'भाईं लेच्मण ! तुम अयोध्या- में ही रहो? पेसा समझाने पर छच्मणके--'आर्य ! आपके साथ सै कार युग भी चार आहरोंके समान और आपके वियोगमें चौद॒ह वर्ष भी 'चौदह मन्वन्तेरोंकें बराबर“ प्रतीत होते हैं? ऐसा कहनेपर सीता और रूच्मण दोनोने रामका ही अनुगमने किया। इसी तरह सरयूने कथाप्रसज्ञर्मँ द्शरथका स्वर्गवास और ननिहालसे छौंदे. हुए भरतजी पिताकी विपत्ति और रामवियोगसे असझ्य सन्तापको प्राप्त कर नन्दिमामर्मे ही सुखभोगसे पराडुख होकर रामकी प्रतीक्षा करते हुए प्रजापालन कर रहे हैं । ऐसा बतकाया। वाक्यकी समाप्तिमें उन्होंने--'इसके बाद जो हुआ उसे जाननेके लिए मेंने एक कलइंसको भेजा है? ऐसा कहा । तब उस कलहंसने वहाँ उपस्थित होकर लच्समण और सीताजी दोनों सेवापूर्वक रामचन्द्रजीका जिस प्रकार अनुसरण कर रहे हैं वह बतलछाया। इसी प्रकार उसने उनकी वनयात्राकी पद्धति और तोन चार दिनोंमें ही अयोध्याराज्यका अतिक्रमण कर शीघ्रही यमुनाकों भी पार कर गोदावरी- के पास जाना तथा वहांपर छचमणका शूपंणखाका नासाकर्तन और उसके सहायक राक्षसेको थुद्धमें रामजीका मारना यह सब कद्दा। फिर उसने वहाँपर सुनहले स्गका आगमन रामका उसका अनुसरण करना इसी बीचमें छच्मणका भी रामके का जाना और किसी भिक्षुकका सीताके समीप आना, इतना बतछाकर चह चुप गया। इसके बाद वे सभी “तब क्या हुआ? ? यह जाननेके लिए आाकुछ होकर उस समाचारको बतलानेके लिए समुद्रके पास चली गईँ। उसी चरिश्नकों गोदावरी समुद्॒कों कह रही थीं। जेसे कि--रामके बाणोसे ताडित वह सुनहरा सूग, भारीच मामक राक्षसके रूपमें परिणत होकर यमलोकको पहुँच गया। वह भिक्षुक भी सीताके . समीपमें रावणके रूपमें परिणत होकर सीताका हरण कर मागमें विश्चके रूपसें उ पस्थित और युद्धके छिए तत्पर जटायुके साथ कुछ समय तक कड़्कर तीचंण खड्गके प्रहारसे उन्हें आहत कर लट्जाको चका गया ।! अतिकरुण इस बृत्तान्तको सुनकर दयाछ समुद्र मूच्छित हो गये | तब गड़ाजी वस्ाश्चलसे पंखा झलकर उन्हें दोशमें ले आई । तब तुझ्ञभद्गा नामकी नदीने 'रामके बाकि म्रहारसे वालिमरण, सुपम्नीवका चक्रवतिपद्छाभ और सीताका अन्वेषण करनेके छिए यज्न तत्र सुप्रीवका वीर वानरोंको भेजना इत्यादि वृसान्तका वर्णन किया। समुद्र ने भी रामचन्द्रजी में सभीका विना कारणके पक्षपातका प्रतिपादन किया ।




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