हितोपदेश | Hitopadesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
476
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# हतापद्रा मन्नज्ञाभः + रू
मूर्सोंपपि शोभते तावत्समायां वस्रवेष्टितः | ,
तब शोमते मूर्खो यावत्किश्िन्न भापते ॥ ४० ॥
एतच्चिन्वयित्वा स राजा परिडितसभां कारितवान् )
राजोबाच--भो भोः परिडताः ! ध्ुयताम् । अस्ति कश्रिदेवस्भूतो
विद्वान यो मम पुताणों_ नित्यमुन्मागेगामिनामनधिगवशाज्षाणामिदानी
नीतिशापोपदेशेन पुनजन्म फारयितु समथेः | यतः--
काचः काशनसंसर्गादते मारक्ती धुतिम् |
तथा सत्संनिधानेन मूर्खो याति प्रवीणताम्॥ ४१ ॥)
मूर्ख इति। सभायास्-पिद्दद्वोईयथाम् ) ताउत्८निश्चयेन । चस्तवेशिता)८-
मह्ईंपद्चनलाइतः, ( दुशाला थोदे हुए )1 भापते-चद॒ति 11 ४० ॥
एवंभूतः ८: ईदशः । उन्मागेंगामिनाम्--मर्यादारहितानामपथप्रहत्तानाम् |
का इति। काउचन-सुपर्णमू। मारकतों -मरक्तमणिसम्बन्धिनों, तचुल्या-
मित्रि यावत् | [ मरकत:- पन्ना ] | प्रवीणता 5; कुशलवां, पारिद्त्यश्च ॥४१॥
पिद्वानों की समा में श्रच्धा फपडा पएइन कर क्द्राचित् मूल भी शोमता है,
परन्तु यह तमी तक शोभा है, जय तर वद कुछ बोकता नहीं है। अर्थात् उसके
बोलते ही उसकी योग्यता ( मूर॑ता ) मालूम शे जाती है ॥ ४० ॥
इस तरह पिचार फर उस राजा ने परिदतों की एक समा की । और उसमे
सब परिडों से पूद्ठा कि--झ्राप लोगों में बोई ऐसा योग्य विद्वान है, जो बुरे
रास्ते पर चलने बाले मेरे इन मूर्पे पुष्रीं को मी सीतिशान्त् का उपदेश देकर
एनज् द्ितोप छन्म करा दे, अर्थात् इन्हें मुघार फर विद्वान फर दे |
क्योंकि--जैठे फाच मी मुदर्य के सम्बन्ध से मरकतमणि (पत्ना) की सौ
ह फो पाता है, इसी प्रदयर सुजनों के सुसर्म से मूर्ख भी चदुर हो जाता
1 ४१॥
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