कृष्णाश्रयस्तोत्रम | Krishnashrayastotram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
93
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अष्टमपत्रे चस्मपद्नक्तितोधवशिष्टम् ।
उच्यते । सा च स्तेहरूपा । तदुक्त निवनन््धे पराहात्म्यत्ाने! त्यस्य ध्याझ्याने
ध्त्तिः सेट! इति। स्नेहस्तु प्रेमेद । न च श्लाव्दिफोक्तमाबायविरोधादसइतमिन प्रति-
'भातीति वास्ये, निरुफेरपि प्रपाणलातू | इतरपा “कृपेदेण! इत्यनुशासनसिद्धस्य कृष्ण-
शब्दस्यानन्दवाचकर्ल गगनकुसुपायमाने स्पादिति भक्तिसरणिकृुशछतमाः परिशीलयन्तु ।
आधुना देशादिसाधनानामसाधकत्वमिति । अधुना कछावित्ययेः | आदिपदात्
काहद्व्यप्रस्थकपृकमैणां महणमितरस्सपष्ट् । उक्त व तल्वायेदीपे 'पडिः संपथते धर्मस्ते
* दुर्लभतराः कलादितति। सवेसाधनरूप इति, पड़िषताधनरूप इत्ययेः। सहृधातात्प्या-
- चुरोधेन सर्वपदस्पात्र सल्लुचितहन्तिलाद। दशलीलेति । “अत्र सर्गों विसगेथ स्थान
पोषणमूतयः । मनन््दन्तरेशानुकया निरोधों पुक्तिराश्रय” इस्येता दशलीछा इत्यथे!। स्वे-
मेतच द्वितीयस्कन्धसुवोधिन्यामस्पदार्यविवेचित विस्तरमयाह्ृक्ष्यमात्रमेवीच्यते न कृत्सम्।
तत्र 'वावदशरीरस्प विष्णोः पुरुषशरीरस्वीकारः
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