श्रीमद वल्लभ वेदान्त | Shreemad Vallabh Vedant

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Shreemad Vallabh Vedant by श्री वल्लभाचार्य - Shri Vallabhacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) वास्तविकता तो यहु है कि वे “सत्य के भौ सत्य होते हुये भौ भावानुसारी हौ जते) यथाथंका, भावानुसरण मिथ्या या काल्पनिके नही अपितु वास्तविक ही होता है ““यद्‌भद्‌ वियात उरुगाय विभावयन्ति तत्तद्‌ वप्‌: प्रणयसे सदनुग्रहाय! (भा० २३।९।११) अथा त्‌-- हम वृद्धि से जैसे तुम्हारा विभावन करते है, वेसा तुम्हाया वास्तविक वयु स्वरूप होता है । यही रह्म की रसरूपता है, जो कि जानन्द की चरम सौम परिणित है । “(सो वै सः (त° उ० २।१।९) श्री वल्लाभाचायः के शुद्धाद्वौत कौ वास्तविक व्याख्या इसी आनन्दां त के आधार पर ष्टौ सकती है । अनन्द ब्रह्म है, ग्रहम अनन्द है! आनन्द से ही सारी सृष्टि होती है, आनन्द मँ हौ लीन होती है। (अनन्दादृह्येव खलु इमानिभूतानि जायन्ते इत्यादि (ते० उ०-- ३1६) अद्दीौत को इस विधा तक पहुंचने के लिए जिन दाश निक घारणाओं को श्री' वल्‍्लभाचाय' उपकरण बनाते हैं या उपयोग मैं लाते है उनमैं मे कुछ धारणायें इस तरह हैं :-- (१) ब्रह्मवाद (२) विरुद्ध धर्माश्रयतात्राद (३) सत्कारणवाद (४) सत्कायंवाद (५) विभा वतिरोभाववादं (६) अ{वक्ृत परिणा वाद (७) कायं कारणतादात्स्य वाद (१) ब्रह्मवाद का तात्पयं है कि जगत की उत्पत्ति स्थिति एवं प्रलय मैं, ब्रह्म-के अतिरिक्त किसी भी अन्य तत्व को माध्यम न मानना | इसे अन्य शब्द मैं ब्रह्मा को (अभिन्न निमित्तो पादानता” भी कह सकते हैं । जगत के लिए अपेक्षित उपादान समवायी त्तथा निमित्त कारण ब्रह्म हो है । अन्य ईश्वरवादी नेय्यायिक आदि, निमित्त कारण तो मानते ह मगर उपादान कारण नहीं मानते। कछ वेदान्ती अपने-अपने ढंग से ब्रह्म को उपादान का कारण तो मानते हैं, उनके मत में ब्रह्म,अपने अत्तिरिक्त अन्य किसी भी तत्व की अपज्ञा रक्‍्खे बिना उपादान कारण नहीं बन सकता अतएव उन्हें विक्तीपादान, प्रकारोपादान, धघमों पादान




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