तत्त्व - चिन्तामणि भाग - 4 | Tattv - Chintamani Bhag - 4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जे डरा खह्ार ७३2५ यथिएि 3 न्द्ठ राय | जरा एसजर 15५० रत ९1९|[था युधिइिर पे 4 2 ० पर गीक्ले तट न चल 52 >ू॑+ 9 ॥ममक घर यंधि (से ज्श्से जानेकी बात कही | ब्राह्मणने धर्मराज युधिष्ठिरसे यह दाचना का कि द किसी प्रकार उस अरणांका ढुद॒वाकर ' से कप 1 कमनक जिन खिल बंद जन. न पल नन (५ उसे द द ताक अन्वह्त्रका काम बंद न हाँ | वह उुनना | था कि सहाराज यधिष्ठिर अपने चारों भाइयोंको साथ ई कि सहाराज युघिड़िर अपने चार्रों भाइयोंकों सा | लेकर उस हरिणके पदचिह्रौंका अनसरण करते ह ए 1 लेकर उस हरिणके पदचिह्ोक्ा अनुसरण करते हुए बस टिक वर लक: पद! को दिला: फीड: बाद । जयलय बहुत दुरतक चठछ यराय। किन्तु अन्तवत वह ः मिल लरकय पक 7 पोज का 5 ली हवा कोल हरिण अन्तधान हो गया ओर सभी भाइ प्यासते व्याकल तु ५ व 4 न न 5: होकर आर के नीचे बेठ यये | 5 - | डे रु ः ई | 1 | ॥ जी ! ः कुछ देर बाद घधर्मराजकी जाज्ञा लेकर नकुछ जछकी खोजसें निकले | वे जल्दी ही एक जलाशवपर पहुच यये पहने यो वन 705 8 कि, परन्तु ज्यां हैं उन्हदान बहाक नल जलका पीना चाह; त्वों ही यह आकाशवाणी हुई [पत्र नझुछ | यह 8 1 ते अमच पडयात्त 43 58 15 साान दरा है | कर प्रशाका उत्तर दय बना काइ इसका जल नहा पा सकता । ह्ताल्य तुम पहल नर फप्रश्नोका >> ० पन्ना 4 विज 1 ॑ं-न्मभथत, अीफ ध न का, 7 अर नरक 3 1 की उत्त दो; किर झूद जल पाआ तथा मसाइवांक लिय॑ 5 अ वाक इक हू है च्त्ति उन पा * मय. पंधील नर 8 महल . को भा छे जाओशा।? कनतु नझकुल ता प्यांचक सार दंचन हा




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