श्रीमद्वाल्मीकिरामायणम् | Shri Madwalmiki Ramayan Uttrardh Iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
606
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चतु.पद्बाश: सगे: भ्घे७
पित्रा नियुक्ता भगवन् प्रवेक्यामस्तपोवनम् ।
धर्ममेव चरिष्यामस्तत्र मूलफलाशनाः ॥१६॥
है भगवबन् ! हम लोग पिता के आदेशानुसार तपोवन सें
प्रवेश करेंगे और वहाँ फलमूल खा कर, धर्मांचरण करे गे ॥१६ ॥
तस्य तह चन॑ श्रत्वा राजपुत्रस्य धीमतः
उपानयत धर्मात्मा गामध्य मुदुक ततः ॥१७॥
धर्माप्मा भरद्वाज ने धीसान् राजकुमार श्रोरामचन्द्र जी के
ऐसे बचन सुन कर, उनको मधुपक, अध्य - ओर चरण धोने को
जल रखा ॥ १७॥
[ टिप्पणी श्रीरामचन्द्र जी को राजकुमार का विशेषण आदि कवि
ने इसलिए, दिशा है कि, मरद्वाज ने उनको मघुपर्क दिआ था | मघुपक
देते का विधान स्मृत्यनुसार राजा को भी है। यथा--
गो मधुपर्काहों वेदाय्याप्याचार्य ऋत्विक् स्नातको राना वा घमयुक्त
इति ]
नानाविधान*चरसान् वन्यमूलफलाभ्रयान् ।
तेस्ये। ददो तप्ततपा वास चैयान्चकल्पयत्& ॥१८॥
नाना प्रकार के वन के कन्द्मूल, फल अन्न तथा रसीले
पदार्थ उनके भोजन के लिए दिए ओर टिकने के लिए स्थान
चतलोया । ( रसीले पदाथ से अभिप्राय शरबत से जान
पढ़ता है )॥ १८ ॥
मुगपत्तिसिरासीनो सुनिश्चिथ॒ समन््ततः ।
राममागतमस्यच्य स्वागतेनाह त' झुनिः ॥१5॥
१ उपानयत--रामसमीर्ष प्राययत्त । (शि० ) २ अन्नरसान्ू--रस
प्रधानान्पदार्थविशेषानित्यर्य .। (गो ०) # पाठान्तरे---चेवाम्यकल्पयत् ।”
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