शेष प्रश्न | Shesh Prashn

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Shesh Prashn  by धन्यकुमार जैन - Dhanyakumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होष प्रश्न १० मनोरमाने इस बात ठत्तर सहँ दिया, मुग्कर देखा तक नहीं सारे क्ष्माकेः उसके सारे झरी रमेँ कोटे उठ जाये । रे डस घटनाक्े बीते एक सप्ताइ हो चुझ । दो दिनसे लसमयमें बादक्त धिर घिर आते हैं और वर्षा छुस हो छाती है; भाज मी सबेरेसे दी ब-भी बसें पाती पक रहा है । दोपहरको कुछ देर बन्द रहा, मसर बादछ ह.े गहीं। आाषासडी हारूत ऐसौ है कि किस उमस वर्षा ध्ुुरू हो सकती है; छतनेगें मनोरमा पूमनेढ़े लिए जैबार होकर छपने पिताके कमरेमें जा पहुँची। आए दाबू मोरी-सौ एक कर्ई अोद आागमकरसीपर बैठे ये डलके दाथमें एक किताब थौ। कझीने श्राअ्र्यदे साप पूझ ' बाइ बापूरी हुम लमौ तक तेगार ही लहीं हुए | आलाज तो इम झोयें ४ इतबारी छकी कत देखने लानेदी बात थी ! बात तो थी बिटिया, क्षेकित शाम मेरी कमरमें शातका दु्ब--.* “// हो मोटर बापस छे चानेके रिए इ४ दें । फ़िर कछ ही के अकगे क्यों ठौक हे न बापूदी | ”? फिसाने रोते हुए कद्मा. मी गईं न पूमनेसे तेरा सिर धुखने ल्मेमा। सूलद्दोतों थोडा भूम-फिर श्रा में तब तक मइ मासिक-पत्रिद्रा देख है कदाभी किसी अप्की है। भष्झ मैं जाती हूँ। पर छोटनेमे मुप्ते दर नहीं दोगी। आइर तुमे बडानौ सुमूंगी सो भमी कहे थादौ हूँ ।” यह प्ररर बद अ्रकेधी ए घूमने. लिशक मो | कप्रे-भरक करन्पर है मनोरमा घर दट भाई और पिछाक कमरेमें बुधते बुसते। बोली “ केछी कहानी है बापूजी ! खतम हो पाई! झिसने हिशी है। ” मयर बात पुंइसे निकडनेड़े बाद दी बह चैक पढ़ी देखा कि कमरेग फिता अफेके लए हैं, धामने शिवमाव देख है। डिमनाजमे उठकर नमरकार किया, और ऋ य. बशे्क घूम बार | ? मनोरमाने ऊबाए सदी दिया; प्षिक्ठ लमस्ट्रारक बदकेसे छरा-सा सिर दिश्मदर उसकी तरफ पूरी हराइसें पौठ करके पिठाड़े कहा पड़ दा पुरी पढ़ चुड़े बापूजी है ्‌




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