श्री गरुड़ पुराण भाग - 2 | Shri Garud Puran Bhag - 2

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Shri Garud Puran Bhag - 2  by श्रीराम शर्मा आचार्य - Shri Ram Sharma Acharya

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जन्म:-

20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)

मृत्यु :-

2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत

अन्य नाम :-

श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी

आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |

गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत

पत्नी :- भगवती देवी शर्मा

श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३० 1] [. गरुडुपुराण अगवाबु घन्वन्तरि ले कहा--हे सुशुत ! झव हम समस्त रोगों के निदान झर्थात्‌ मुलकारण को तुमको यतलाते हैं जिसको तत्त्व पूर्वक प्राव्रैय आदि मु्ति- श्रेष्रों ने पढ़िले बतलाया था ॥18॥ यह रोग पाप होता है, ज्श्र व्याधि है भोर किसी भो प्रकार का विकार का होना दुष्ट झामय होता है । इनके यक्षमा-” झतड़ु-गदा--वाघा ये सभी दाब्द पर्याय वाचक भर्थात्‌ समानार्थक शब्द ह्ुभ्ा करते हैं ॥ ३ ॥ निदा--पूर्वरूप--रूप भर्थात्‌ रोग का स्वरूप--उपशय प्रोर सम्प्राति इन पाँबों के द्वारा रोगो का विज्ञान शर्थात्‌ विधेष रूप से मलो भाँति ज्ञान प्राप्त करना होता है ऐसे यह पाँच प्रकार का निदान ही फहां जाता है मंपोंकि इन्हीं से वास्तविक रोगों का ज्ञान होता है ॥३॥ केवल निदान के भी निमित्त--हेतु--प्रायतत--प्रत्यय उत्थान कारण इन पर्याय बाचक झ्दी के द्वारा कहा गया दै जिससे कि रोगो का प्राग्रूप लक्षित हुमा करता है॥ ४ ॥! उत्पन्न होते बाला भामय झर्पात्‌ रोग किसो विशेष दोष से ही भधिित हुए करता है | निर् भर्यात्‌ व्याधियो का चिह्द अल्प होने से अव्यक्त प्रकाश में न झाने वाला भोर ठोक भ्रकार से म जानने के योग्य होता है ॥५॥ पभारम्म में बह कुछ छिपा हुआ-सा रहता हे विन्तु शर्न.२ भपना एक प्रकट स्प्ट स्वरूप घारण अर लेठा है. तो उसी को उसरा रूप कहा करते हैं। किसी दोप के होने ते निदान हुआ । उसका फिर एक भब्यक्त स्वरूप बनकर पूर्ष॑ रूप हुप्ा घोर जब यह श्यक्त होबर सामने स्पष्ट होगया तो रूप होगया भर्षात्‌ रोग सह्दी स्वर झागया । हमको संस्थान-व्यक्षन सदश-बविक्ध भौर पाश्टति कहते हैं ॥ ५ हेवु-ध्यापि से विपयेस्त भोर विपयंहत झर्थ के करने बाले शोषध-मछ्त भीर दिद्ारों गा उपयोग सुसावह होता है उसको व्याधि पा उपदय षढते हैं | इगी क्षो साहम्य नाम से भो बड्ठा जाता है। इसके जो विपरीत हो भर्थादें प्रोपध- धन्न और विद्वारों का उपयोग सुपर देने वाला न हो वही झनुपशय बढ्दा भागी है। इमी को व्याधि को धगारम्प यह संज्ञा दो गई है ॥७15॥1॥ यया दुष्टेन दोपेग्श यथा चानुथिसपंता॥ निवृत्तिरामयम्यासी सम्प्राप्तियातिरागति- 118 संम्धाविपन्पप्राधान्यवलकाल विश्षेपत, 1 सा भिच्ते यादव यदयमस्तेः्शो ज्यरा इति 1१०




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