श्रावकधर्म - प्रकाश | Shravak Dharm Prakash

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Shravak Dharm Prakash by मुनि धनराज - Muni Dhanraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला-पुज्ज (१) प्रइन--श्रावक क्सि कहते हैं ? उत्तर-कअक्षरों का अथ इस प्रकार है-( था )जो सवज्ञ- भाषित हत्त्व में भ्द्धा रखता हो (व) सत्पात्रों में दान रूप बोझ बोता ही तथा (क) कम रूप रजो को दूर करता हो वहु भावक कहलाता है 1! अथवा जो सवज्ञ भगवान्‌ को वाणी को श्रद्धापूवत्र सुनता है उसे श्रावक बहते हैं। श्रमणों--धाघुओं की उपासना--सेवा बरन से श्रावक को श्रमणोपासक भी कहा गया है 1९ (३२) प्रश्भ--वया श्रावक जम से ही होते हैं या पीछे बनना पडता है? उत्तर--'ास्‍्तों मे समगोधासए जाए अर्थात्‌ वह श्रमणोपासत्र बना, ऐसा पाठ आया है, अत श्रावक के योग्य गुण एवं व्रत घारण करने पे श्रावत बनता है। यद्यपि व्यवहार म॑ श्रावक का बेटा श्रावक्र कह- छाता है, लेक्नि वास्तव मे;वह भावक होता नही। हो भी कप्ते सकता है। जबकि पढ़े बिना ८शवटर,वा बेटा डावटर नहीं होता माह्टर भा बेटा मास्टर नही होता एवं भाज के भ्रजातन्‍्त्र में जनमत एवं योग्यता प्राप्त किये बिना राष्ट्रपति का बेटा भो राष्ट्रपति नहीं हो सकता ? अस्तु ! ध्रावकों को श्रावकोचित गुण घारन चाहिए। १--स्था०, ४४ टोका । २०-ठपाह्क््दशा-- दक्षाश्रृत| एक घ--ओपपाटिक--मगवती भादि यूत्रों में।




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