सम्राट हर्ष | Samrat Harsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बदला भौर बदला २५,
उजलथकलमरत22 2० >> जक
आत्मा काँप गई उसे यह भय सताने लगा कि कहीं राजकुमार
मेरा सिंहासन न छीन ले। शंका और ईरप्या से वह व्याकुल हो ;
उठा। उसके मन में बार-बार यही प्रश्न उठने लगा कि किस
प्रकार राजकुमार को दुनिया से उठा दूं ? युद्ध में मारना तो
उसने असम्भव समझ लिया; क्योंकि शशांक को विश्वास हो
गया था कि राज्यवर्दन को हराने वाला सेनानी अभी तक पैदा
ही नहीं हुआ है । अन्त में उसने छल्न-नीति से काम लेने का
निश्चय किया। देर तक वह मन ही मन अनेक प्रकार के तके-
वितरक करता रहा, फिर एकाएक प्रसन्न हो उठा । उसकी
आँयों में चमक आ गई और वह अपने-आप पर खुद ही
मुस्करा उठा। उसने एक अचूक पड़्यन्त्र सोच लिया था,
जिसके द्वारा उसकी इच्छा पूर्ण हो सकती थी। वह उठा और
अकड़ता हुआ महल में टहलने लगा ।
मालवा-विजय के उपलक्ष्य में राज्यवद्धन का सम्मान करने
के लिए शशांक ने अपना दूत भेज कर रास्ते में से ही उसे
बुलवा लिया। राज्यवद्धेन उस पर विश्वास करके चल पड़ा ।
दावत देने के बाद भरे दरबार में शशाक ने राज्यवर्द्धन को
राजमी वस्त्र प्रदान किये। उन पर सोने-चाँदी का काम किया
गया था। उस चमचमाती हुई और सुगन्धित पोशाक में राज्य-
वर्द्धन को देखकर सभी दरबारी तालियाँ वजाने लगे । फिर
स्वर्ण-मुद्राओं तथा आभूषणों से भरा हुआ थाल राजकुमार को
भेट कर शशांक ने उसकी प्रशसा में कुछ धब्द कहे | इसके बाद
दरबार उठ गया। राज्यवर्द्धन अपने सरदारो के साथ शिविर
की ओर लौट पड़ा 1
राजकुमार थोडी दूर तक ही आया था कि उसका सिर
चकराने लगा। उसने सरदारों को बताया, “मेरी सारी देह में
जैसे आग जल रही है ! ”
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