अचानक एक दिन | Achanak Ek Din

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Achanak Ek Din by शंकर - Shankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंचार्नक एक दिन [| २६ कै बाद दी मिनिट भी वीदी से अलग होने पर अधोर हो उठता है। वई बार बह सोचती थी कि अमिताम से पूछे कि विवाह किये बिचा वह इतने दिन रहा कैसे ? आखिर एक दिन उसका मूड अच्छा देखकर पूछ ही लिया था। प्रश्न सुन _ कर जदवर्दस्ती सोचकर कुमकुम को गोद में तिदाकर बोला था, “सील लगा रहा हैं, इसके बाद मुंह मंद खोलना 1” और उसके ओठों पर दीर्घ, उष्ण घुम्दन अंकित कर दिया था उसने । फिर कुमकुम की पुतलियों को तेजी से इपर-उबर अपने मुँह फी तरफ घूमते देखकर ख्याल आधा था ऊ्रि आँखों पर तो मोहर लगाई ही नही गई 1 ओछठें से ओठ हटाकर बोला था, “तुमने सही वात उठाई कुमकुम । पुरुष शायद फोकाकोला की बोतल की तरह होता है--जव तक कैप सगी रहती है, दूसरी तरह का रहता है, परन्तु जैसे ही कैप छुलती है, अन्दर का सारा आवेग बड़ी प्रबतता से बाहर निकल आता है, फिर उसे वंद रसना असंभव द्वोता है ॥! पत्ति की गोद में लेटी कुमकुम के नेश्र चंचल हो उठे थे। बोली थी, “ओ”** समम गई | इसीलिये तुम्हें सील तोड़ने के पहले इतनी दु्चिता थी। वासना, चारुशीला एवं कालेज की दूसरी सारी सहेलियों से कह दूँगी कि अब से बहू पतियों को कोकाकोला, यम्स अप, लिम्का आदि नामों से पुकारा करें 1! इसके थाद लड़कियों के स्वभाव को बात आई थी। लड़कियों में कार्बन डाइ-अक्साइड का उच्छ वास नहीं होता । कैप खोलते ही उनका सब बुध कुछ क्षणों में मह्ठी निकल आता । इस पर कुमकुम के साप्रह अनु रोघ करने पर, अमि- दाम ने कहा था, “लड़कियाँ धायद हयपेस्ट के ट्यूब जैसी होती हैं । सावधानी से बेंच खोलकर एकदम नीचे हल्का सा दवाव ढालने पर ऊपर से इमोशन बाहर आता है ॥ ! आँखें मचाकर कुमकुम ने कहा था, “ठहरो ! कालेज के रियूनियन में कपनी सारी सह्देलियों को बता दूँगी कि पुरुष हमें हृथपेस्ट की ट्यूब समझते हैं। दबा-दवाकर सारी सम्पदा खाली करने के वाद ट्यूब का कोई मूल्य ही नहीं रहता ।!? इस पर कुमकुम के माये का घुम्बन लेकर अमिताम ने कहा या, “मैंने ऐसा कतई नहीं कहा ! मेरा मतलव था। “मुहर तोड़ने के बाद घोड़ा-घोड़ा दवाने से दृपपेस्ट बहुत दिन चल सकता है। अगर जितना निकलता है इसका उचित उप>« योग किया जाये । लेकिन पुरुष कोल्डड्रिकस जैसे होते हैं--जब धक ढैप नहीं) _




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