मरुभूमि | Marubhumi

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Marubhumi by शंकर - Shankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मरभूमि # १७ “बाप रे ! तुम यह सब क्या कह रहे हा सोम ? मा-बाप का आशीवाद जल-स्थल-अन्तरिक्ष सब जगह हमारी रक्षा करता है। मेरे बाबूजी की ही बात लो । भागलपुर मे बैठे-बेठे मेरे बार में साचत रहते है तो उससे क्या मेरी कोई भलाई नही हाती 7? “उफू भाभी जी, ईश्वर न आपका निर्माण किस धातु स किया है ? इस बीसवी सदी मे भी आप अचल हैं । सबको प्यार देकर, सब पर विश्वास रखे, बैठी हुई हैं । भाभी, आप ही एकमात्र ऐसी औरत है जिसे समझा सकता मेरे लिए मुश्किल है।” कमला भाभो ने कहा था, “तुम लौटोगे तां एक प्याली स्पशलं चाय तुम्हारा इतजार करती रहेगी । उसके बाद तुम किसी सिनमा का टिकट कटा सकते हो ।” “बाबूजी से कहिये, कुछ खबर न आने का मतलब ही है कि समाचार दिचकुल ठीक है--नो यूज इज गुड प्यूज 1 अभिजित बेनर्जी अपनी आधुसिक वाइफ बुलबुल बनर्जी क साय दुर्गापुर मे बिलकुल ठीक हैं । यह्‌ जानने बे लिए यह अर्जेट टेलीग्राम दुर्गापुर भेजव की कोई जरूरत नहीं है ।” देवर को बिस्तर से उठाते हुए कमला भाभी ने कहा था, “जरूरत है सोम, बडे होओगे तब यह बात तुम्हारों समझ मे आयेगी।” सोमनाथ ने जरा आश्चय মি জা कोतुक के साथ कमला भाभी की जोर देखते हुए कहा था, “क्या बोली ?” कमला भाभी ने गभीरता क॑ साथ उत्तर दिया था, “जोधपुर पाक का यह बैनर्जी भवन, दोमजिले की यह बालकना, वह ईजी चेयर, वह छाटी टेबल-- यह सब चीज तो रह जायेगी । वे ही गवाह रहगी कि एक दिन तुम भी वहाँ बेठे-वेठे बाल-बच्चो के लिए इसी तरह चिता से व्यकरल होगे या नही 1 निरपाय सोमनाथ नं सिर हिलाकर उस समय कहा था, “रामकं जमन क॑ पहले ही आप रामायण की बात लेकर बैठ ग्रयी ? ग्रहस्थी के कामों मे इस तरह अपने का बर्बाद कटने क बजाय जाप कविता लिखती तो कही अच्छा रहता । याप मं इमोशन है भामी जौ । फिलहाल रम वेकार ह--अनएम्प्लाएड ग्रेडुएट । लेक्नि आपने मेरे पोता-पोती तक की तसवीर बना डाली है 1 बाहु 1 सोमनाथ ने कमला भाभी के चेहरे की ओर ताका था। “भाभी जी, आपको एक बात की गारण्टो दे रहा हूँ । बाबू जी वो तरह मैं दुनिया के किसी नादमी के लिए इतना चिन्तित नही रंगा ! ववाद करने के लिएु इतना खर~ प्लस वक्त मेरे पासं कभी नही रहेगा 1




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