समीक्षा के मान और हिंदी की विशिष्ठ प्रवृतियाँ | Samiksha Ke Maan Aur Hindi Samiksha Ki Vishishth Parvratiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डॉ प्रप्तापताशयस टंडल-अस्म! सम्गऊ, अक्मा मी० ए» (जॉनर्स) तबा एम० ए ([ट्पेष्रलत) सल्नदझ विधव्विधालय में हुई। हिम्शों खाहित्प सम्मेप्तत, प्रयाग द्वारा जायांजित प्रथमा, मध्यमा विध्वारद तथा उत्तमा (साहित्यए्न) परीक्षाएँ बत्तीर्भ कीं। सन्‌ १९५८ में सशनऊ विद्वविद्यालय से हिम्दौ उपत्पास में कथा छिल्प छा डिकाए पीर्पक प्रबन्ध पर पी०-एच० डौ०» की उपाधि प्राप्त की। सस्बदरू विश्य विद्यालय से ही १९६३ में समीक्षा के मान भोर हिंदी समीक्षा की विष्ियया प्रदत्तियाँ शीर्पक प्रमस्‍्प पर डी० सिटू की उपाधि प्राप्त्की । उक्त प्रवाथ पर सशनऊ विएवब विद्याप्तय द्वारा सन्‌ १९६३ का शओोगर्शी रिप्नर्ज प्राइअ भी प्रदाम किया यया। प्रकाशित दृहियाँ : भ्रायुतिक साहित्य ( निवत्ध संप्रह ) सन्‌ १९१६ ( प्रकाप्तक-बिध्ामंदिर, जश्न) हिस्दी उपस्थाप्त में बर्ष स्ताउशा प्रेमचरू ग्रुप (सोज-रचता) सत्‌ १९५३ ( प्रकाशक हिंदी घिमाग क्षरमझ विए्बबिधालय ) ौड़िशे (अनुबाद) घत्‌ १९५६ (प्रकाप्क--साहिस्य प्रकाशन टिकी), रौता क्षी मात (उपस्मास) सन्‌ १९१७ (प्रकाकषक- प्रेम प्रकाप्ततः सलनऊ) हिंदौ साहित्य: पिछला दइशाक (आलोचमा) सभ्‌ १९४७ (प्रकाशक हिस्टी साहिस्य भण्डार, लश्वतऊ ) हिरदी शपस्पास में कबा-पफ़िस्प का दिक्ताय (शोप-अगत्व) पन्‌ १९५९, (प्रकाशक-द्विष्दी साहित्य भष्डार, ज्तऊ) अर्यी बृध्ठि (उपापाछ) छू १९६०७ [ प्रकापघ&--एजप्रास एस्श सस्स दिलसो) बदलते इरादे (कहाती-संप्रह) सत्‌ १९६ ( प्रकाएऊ--हिख्दी साहिप्य मंडार, लक्षतऊ), हिंदी एपस्पास का प्रदूमण्त भौर दिकास ( सक्षिप्त प्रथस्ब ) सम्‌ १९६० (प्रकाश%--हिरी साहिए्य भष्डार, सशरझऊ) रीता ( पाकेः-संपफ़रग) सन १९६४२ ( हिंद पाक़ेठ बुद्स मई दिल्सी) सवा यात्रा (साटक) संग १९६२ (प्रकाप्क--मारती साहित्य मन्दिर दिलसी) छपहूसे प/ती क्रो बुरे (उपस्पास) सन्‌ १९६४ (प्रकाधक-विगेक प्रकाशन सबतऊ) धूरप को पूति (कह़ानी-संबह) छतू १९६४ (प्रद्माण४-दिवेक प्रकाणत सल्नऊ) भबाह कतकोमा (एकांडी-संग्रह) सन्‌ १९६४ ( प्रकाश्हू-जिबंक प्रकाछन सदभऊ) तथा हिर्दी प्रफ्त्यास कला सन्‌ १९६१ (प्रडाध>-हिस्शाी समिति, उ प्र शासन सखगझ) आाईि। उपयुक्त मैं से हिंदी उपस्यास मैं कमा लश्प का विकास तबा धर्थो दृष्टि तामक रचतगाएँ उत्तर भरेप्तीय झासत द्वारा पुरस्कृत की गर्यी । धंपाइन कार्य सवनऊ से प्रकाप्नित तई कहानी संट्सत (१९४६) का संयुक्त रूप से संपादत किया | सन्‌ १९४११ से १९१९ ठक पुय थेजता (सखठऊ) के संपादक मंशइ्त में रहे। जराकाशवानो सै एक दर्जन ते भषिक कहानियाँ बार्ताएँ ठपा राटक आदि श्रसाएित हो चुके हैं | सथ्‌ १९६४ में इृश्लो (योरप) की याजा की हपा रोम पिस्शोहया पौह्ा तथा फ्लोरेंस जादि एतिहवासिक सगरों का प्रमण किया । अध्यापत लगवरी-अब्दूबर १९१९ से राजकीय रजा डिदी कालेज, रामपुर में हिंदी प्राप्पापक रहते के आद मस्‍्टूबर १९१९ पे सश्धनऊ दिप़्मदित्ालय के हिंद्दी बिमाम में प्राध्यापक के रुप में काम कर रहे हैं।




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