संस्कृत वाड्मय कोश भाग - 2 | Sanskrit Vadamay Kosh Vol - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44.79 MB
कुल पष्ठ :
634
श्रेणी :
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No Information available about डॉ श्रीधर भास्कर वर्णेकर - Dr. Shreedhar Bhaskar Varnekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के आरंभ में दिये श्लोकों से भी इसी मिश्चय की पुष्टि होती है । (2) ईशर-पार्वती सवाद रूप योग की चर्चा के अनुसार इस तत्र का सब वर्ण और आश्रमों द्वारा अनुष्ठान किया जा सकता है। 10 पटलों में पूर्ण (3) नारद-शिव सवादरूप - (श्लोक 1000) घिषय- योग ज्ञान कर्म अकर्म आदि का निरूपण बिन्टुनिर्धारण बह्डिमार्ग धूममार्ग आदि का स्वरूप तीन गुणों के विभाग स्थूल सुक्ष्म आदि का मिरूपण षट्यक्र दीक्षा शब्द की व्युत्पत्ति और दीक्षा-माहात््य । अक्षरमालिका - विषय-तत्रशाख्र के अनुसार अकारादि वर्णों के आध्यात्मिक स्वरूप का रहस्य । अक्षमालिकोपनिषद् - 108 उपनिषदों में से 67 वा उपनिषद्। विषय- संस्कृत भाषा के 50 वर्णों का विचार अक्षमाला के अनुसार किया है। इसमें प्रजापति तथा गुह के सवादरूप में अक्षमाला की जानकारी दी गई है। अक्षयपत्र (व्यायोग ) - ले - दामोदरन् नम्बुद्री । ई 19 वीं शती । अक्षरकोश - ले - पुरुषोत्तम देव । ई 12 वीं शती। अक्षरगुम्फ - ले- सामराज दीक्षित । मथुरा के निवासी । ई 17 वीं शत्ती । अक्षयनिधिकथा - ले - श्रुतसागरसूरि (जैनाचार्य) ई 16 वीं शती | अगस्त्यरामायणम्ू - परपरा के अनुसार इंसकी रचना अगस्त्य द्वारा स्वारोचिष मन्वन्तर के द्वितीय कृतयुग में हुई। श्लोक सख्या सोलह हजार । विभिन्न प्रकार की कथाए इस ग्रथ में है । अगस्त्यसहिता - अगस्त्य के नाम पर 33 अध्यायों की इस सहिता में श्लोक सख्या है 7953। अगस्त्य-सुतीक्ष्ण सवाद से अ्न्थ-विस्तार हुआ है। इसमे राममत्र की उपासना का रहस्य एवं विधि और ब्रह्मविद्या का निरूपण है। सीताराम की आलिगित युगलमूर्ति का ध्यान एव वर्णन है। रामभक्ति शाखा के बैष्णवों का यह परम आदरणीय ग्रन्थ है। अग्निजा - स्वातत्यवीर सावरकर के चुने हुए 12 मराठी काव्यों का अनुवाद। अनुवादक- डा. गजानन बालकृष्ण पव्ठसुले । पुणेनिवासी । अग्निपुराण - 18 पुराणों के पारपरिक क्रमानुसार 8 दा पुराण। यह पुराण भास्तीय विद्या का महाकोश है। शताब्दियों से प्रवाहित भारतीय वाड्मय में व्याप्त व्याकरण तत््वज्ञान सुश्रुत॒ का औषध-ज्ञान शब्दकोश काव्यशास्त्र एव ज्योतिष आदि अनेक विषयों का समावेश इस पुराण में किया गया है। अधिकाश विद्वान इसे 7 वीं से 9 वीं शती के बीच की रचना मानते हैं। डा. हाजरा और पार्जिटर के अनुसार इसका समय 9 वीं शती का है। इस पुराण में 383 अध्याय और 11 457 श्लोक हैं। इसमें अग्निरवाच ईश्वर उवाच 2 / सस्कृत वाइमय कोश - ग्रंथ ख़प्ड पुष्कर उबाख आदि बक्ताओं के नाम हैं जिनसे प्रतीत होता कि तीन-यार व्ताओं ने मिलकर यह बनाया हैं इस का विस्तार प्रा एवं अपरा बिद्या के आधार पर है। उसके फ्रडग मीमांसादि दर्शन आदि का निर्देश अपस विद्या के रूप में है। त्रह्माज्न जिससे होता है उस अध्यात्मविद्या का गौरव परा बिद्या में किया है। अवतार चर राजवंश विश्व की उत्पत्ति तत्वज्ञान व्यवहार नीति आदि विनिध प्रथों का इसमें विके्चन है। अध्यात्म का विकेयन अल्प होने से इसे तामसकोटी का मामा गया है। शैव धर्म की ओर इस के है। रामरावणयोर्युद्ध रामरावणयोरिव यह सुप्रसिद्ध वचन अग्निपुराण में ही मिलता है। प्राचीन काल में दैत्य लैदिक कर्मों का आयरण करते थे। यरिणामत वे बलवान थे। देव-दैत्य सप्राम में उनकी विजय के पश्चात् सारे देव विष्णु के पास पहुचे। दैत्यों को धर्मश्रष्ट कर उनका नाश करने हेतु विष्णु ने बुद्धावतार लिया। अवतारवर्णन के पश्चात् सर्ग-प्रतिसर्ग का वर्णन है। अव्यक्त ब्रह्म से क्रमश सृष्टि की उत्पत्ति देवोपासना मंत्र वास्तुशास्र देवालय देवताओं की मूर्तिया देव-प्रतिष्ठा जीणोंद्धार की भी चर्चा है। देवप्रतिष्ठा के लिये मध्यदेश का ब्राह्मण ही पात्र माना है। कच्छ कावेरी कॉकण कलिंग के ब्राह्मण अपात्र बताये गये हैं । सप्तद्वीप एवं सागर के नाम अगले अध्याय में है। आदर्श राजा का लक्षण राजा स्यात् जनरजनात यह बताया है। राजा प्रजा का प्रेम सपादन करे- अरक्षिता प्रजा यस्य नरकस्तस्य मम्दिरम (जिसकी प्रजा अरक्षित है उस राजा का भवन नरकतुल्य है। जनानुरागप्रभवा राज्ञो राज्यमहीश्रिय + राजा का राज्य पृथ्वी और सम्पमत्ति प्रजा के अनुराग से ही निर्माण होते हैं। इस पुराण में विशेष उल्लेखनीय भाग गीतसार का है। एक श्लोक में या श्लोकार्थ में उस अध्याय का तात्पर्थ आ जाता है। दान के बारे में अग्निपुणण में कहा गया है देशे काले च पात्रे च दान कोटिगुण भवेत देश काल और पात्र का विचार कर किया गया दान कोटिगुणयुत होता है। गाय की महत्ता इस श्लोक में बताई है - गाव प्रतिष्ठा भूतना गाव स्वस््ययन परम् | अन्नमेवर पर गाबों देवाना हविरुत्मम् । । अर्थात् गाय इस प्राणिमात्र का आधार है। गाय परम मगल है। गोरसपदार्थ परम अन्र एवं देवताओं का उत्तम हवि्द्रव्य है। इस पुणण को समस्त भारतीय बिद्या का धिश्वकोश कहना
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