सचित्र महाभारत भाषा टीका अंक १ | Sachitra Mahabharat Bhasha Teeka Ank 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
520
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सुखासीनानभ्यगच्छद्रह्मपीन._ संश्षितत्रतान् ।
विनयावनतो भूत्वा कदाचित् सूतनन्दनः ॥
तसाश्रममनुप्राप्तं
चित्रा: श्रोतुं कथास्ततन्र परिवधुस्तपस्विनः ॥
अभिवाद्य मुनींस्तांस्तु स्वानेव कृताअलिः ।
अप्च्छत्त तपोबद्धि सद्धिश्रेवाभिपूजितः
अथ तेपूपविष्टेप. सर्वेष्चेव
निर्दिष्टमासन॑. भेजे
सुखासीन ततस्तं तु विश्रान्तमुपलक्ष्य च ।
अथापृच्छटपिस्तत्र कश्चित् प्रस्तावयन् कथाः
कुत आगम्यते सोते क चाय विह्नतस्त्वया ।
कालः कमलपत्राक्ष शंसेतत् एच्छतों मम
एवं .प्रष्ठोध्रवीत्. सम्यग्यथावक्लोमहर्षणिः
महाभारत [ आदिपर्च
२्॥ है
'मैमिपारण्यवासिनाम्ू_ । |
३॥ |
॥ ४॥ |
तपस्विथु । |
विनयाछोमहपंणिः ॥ ५ ॥ !
३
|
॥ ६ ॥ |
|
॥ ७॥
।
च चरिताश्रयम् ॥ ८ ॥
वाक्य वचनसंपन्नस्तेपां
तस्मिन् सदसि विस्तीर्णे मुनीनां भावितात्मनाम् ।
सौतिस्वाच--जनमेजयस्य राजपें: सर्पंसत्रे महात्मनः ॥ ९ ॥
ऐसे कदाचित् सूतकुछ को प्रसत करने वाले
डग्रश्नवा विनय से नम्र होकर सुख्य से विराजमान
औनकादि अन्म ऋषियों के समीप आये ॥ २ ॥
सूत जी को देखकर सब ऋषि विचित्र कथाएँ
सुनने की अमिटापा से चारों ओर घेर कर बेठ गए ॥|
सूतपुप्र ने नप्नता पूर्वक हाथ जोट कर सयको
प्रणाम फरफे तपोषृद्धि का समाचार पृछा, उन संत
लोगों ने भी सत जी का बडा आदर सन्कार क्या।
इसके अनम्तर लोमहर्पण के पृत्र ( उग्रश्नवा जी ) इन
सब नपस्थियं के यथा स्थान यठ जाने पर आप भी
विर्देश किये आसन पर विगजमान हों गये ॥३1०॥
नय उन में से बोई एक ऋषि विश्राम करवे
सुख पूर्वक विराजमान सूत जी को जानकर कथाओं
का प्रस्ताव ( मुखयन्ध ) करता हुआ पृछने गा ॥६॥
हे सूतपुत्र ' आपका कहा से यहा आना हुआ
और यह समय आपने फ्हा कहा विहरण से व्यतीत
;
क्या। है कमल के सह्य विज्ञार लोचन ! यह मुझ
से आप कथन कीजिये ॥ ७॥।
ऐसा पूरने पर होमहर्षण के पुत्र जो कि कहने
मे बडे कुशल थे उन के चारितों का आश्रय वाक्य उस
सभा में कथन करने लगे ॥ ८ ॥
जो विस्तृत सभा उन भाविता'मा मुनियो से
झोमायमान थी। सृतपुत्र जी बोरे-हे महर्पियों !
मदात्मा राता जनमजय के सर्प यज्ञ में वैशग्पयायन
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