सद्वर्ममंण्डनम् | Sadhdrmmandanam

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Sadhdrmmandanam by आचार्य श्री जवाहर - Acharya Shri Jawahar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ला आर्थात_ जगतके सस्पृण जीवोकी रक्षा रूप दयाके लिये भगवानने प्रवचन कद है। इस सूलपाठमे जीव'क्षा रूप धमके लिये जेनागमकी रचना होना वतछायी गई है। अत जीवरक्षा रूप धम जेन धर्मका प्रधान अड्ज है। उस जीवरक्षाको जो धर्म मानता दै ओर विधिवत्‌ उसका पाछल करता है वही तीर्श॑द्ररकी आज्ञाका आराधक पुरुष है। इसके विपगव जो जीवरक्षाकों धमम नहीं मानता किन्तु इसको पाप झथवा अघम वठलाता दे बह धमका द्रोही और वीवरागफी भाज्ञाका विरस्कार करने बालू! है। पे वल जेनधम ही जीवरक्षाको प्रधान घम नहों बतलावा किन्तु दूसरे मतवाले शास्त्र भी इसे सर्वोत्तम और सप्रधान धर्म मानते हैं। महाभारत शान्तिपर्मे लिखा है कि-प्राणिना रक्षण युक्त मत्युभीताहि जन्तव, आत्मौपस्येन जानद्विरिष्टं सवस्य जीवित”! “दीयते मार्य्यमाणस्य कोटि ज्ीवितमेव वा। धनरो्टि परित्यज्य जीवो ज्ञीवतु मिच्छति?। जीवाना रक्षण श्रेष्ठ जीव। ज्ञीबित काक्षिण तस्मात्समस्तदानेभ्योउभयदान प्रशस्यते एकत का वनों मेरुवेहु्ल्ा वपुल्धरा एकतो भय भीतस्य प्राणिन प्राणरक्षणप्‌? शर्थात_ जेसे रपना जीवन इ्ट है उसी तरह सभी प्राणियोंक्रा अपना अपना जीवन इष्ट है, सभी जीव मरनेतते डरते है इसलिये सभीको अपने समान झञान कर उनऊी प्राणरक्षा करनी चाहिये। मारे ज्गने वाले पुरुषको एक तरफ करोड़ो घर्र दिया जाय और दूसरो झोर उछका जीवन दिया जाय तो वह्‌ धन छोड़ कर जीवनफी ही इच्छा करता है। जीद रक्षा करना सबसे प्रधान धर्म है । सभी जोव ज्ञीबित रहना च हते हैं। इप्रलिये सभी दानोमे अभयदान यान' जञावरक्षा का श्रेप्ठ है। एक तर्क खोनेका पद्बेत मेर >२ गहुरज्ला प्र थवी रख दी जाय और दूसरे तग्फ मृत्युभीत पुरुषका प्राणएक्षण रूप घम रख दियाजाय तो प्राणरक्षा रूप धर्म ही श्रेष्ठ सिद्ध होगा। इसी प्रकार विष्णु पुगणमे भी छिखा है-- “कपिछाना सहस्नाणि योद्विज्षस्य प्रयच्छसि एफस्य जीवित द्यान्तच तुल्यं युधिष्ठिए? न्‍ अर




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