मुक्तक कुसुमांजलि | Muktak Kusumanjali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देउ ण॑ देउले णवि सि्रए णवि लिप्पइ जवि चित्ति।
अखउ णिरजणु णाणमउ सिउ सठिउ सम जित्ति ॥13॥
जाणवि मण्णवि अप्पु परु जो पर-भाउ चएइ।
सो णिवु सुद्धध भावउउ णाणिहि चरणु हवेइ ॥141॥
जावइ णाणिउ उपसमइ तामइ सजदु होइ।
होइ कसायहेँ वसि गयउ जीव असजदु सो ॥15॥
णाण विहीणहेँ मोक्ख पठ ओघध म कासु विजोइ ।
चहुएँ सलिल विरोलियई करु घोप्पएठ ण होइ ॥16॥
भूजतु वि णिय कम्म फलु जो तहिं राउ ण जाइ1
सो णवि बधइ कम्मु पुषु सचिउ जेण विलाइ ॥17॥
राय-दोसवे परिहरिवि जे सम जीव णियति।
ते सम भावि परिद्ठिया लहु णिव्वाणू लह॒ति ॥18॥
भल्लाहँ वि णासति ग्रुण जहेँ ससरग यलेहिं।
वइसाणरु लोहहें मिलिउ तें पिदूटिपइ धर्णोहि ॥19॥
जिण्णि व॑त्यि जेम बुहु देहु ण भण्णइ जिण्णु।
देहि जिण्णि णाणि तहें अप्पु ण भण्ण जिण्णु ॥20॥
भिण्णउ वत्यु जि जेम जिय देहहेँ भण्णइ णाणि ।
देहु वि भिण्णउं णाणि तहें भ्रप्पहें भण्णयइ जाणि ॥21॥
(_) (परमात्म प्रकाश से)
ति-पयारो अप्पा मुर्णाह परु अतर बहिरप्पु।
पर जापहि अतर-सहिउ बाहिरु चयहि णिभतु ॥22॥
मिच्छा-दसण मोहिपएठ पर अप्पा ने समुणेइ।
सो बहिरप्पा जिण-भणिउ पुण ससार भमेइ ॥23॥
गिहि-वावार-परिटठिया हेयाहेड. मुणति।
अणुदिणु क्षाएंह देउ जिणु सहु णिव्बाणु लहति ॥24॥
जह सलिलेण ण॒ लिपपियद कमलणि पत्त क्पानि |
त्तह कम्मेहि ण लिप्पियद जद रइ अप्प सहावि ॥251
राय रोस वे परिहरिवि जो समभाउठ मुणेइ ॥
सो सामाइउ जाणि फुडु केवलि एम भणेइ 1261
(योग्रसतार से)
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