उभय प्रबोधक रामायण | Ubhay Prabodhak Ramayan

Ubhay Prabodhak Ramayan by डॉ. भगवती प्रसाद सिंह - Dr. Bhagavati Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१६ सुचि विचार को दड नियम-यम-संयम दाना । तप चोखी तसरवारि भरोसा चमें प्रमाना ॥ श्रद्धा अरु उत्साह पुनि, हिम्मति अभय तुरंग है। कह बनादास स्यदन सुझत, होन योग नहिं भग है ॥* हरदम सुमिरन नाम सारथी परम सयाना । मत्री पुनि सहसग सैन बहु वेद विधघाना ॥ सर्वभाति सतोष सेत ताको दिढ़ करिए । परमदोध रिपु-्वंधु छत्र अविचल सिर घरिए ॥ प्रवल बअनल वैवल्य की, लक फूकि करिए कटा । कह बनादास नैना सजग ववहूँ न पग पीछे हटा ॥* परिणाम--सहजस्वरुप, मोक्ष अयदा अदघ (घाम) को प्राप्ति काटि रिपुन को सीस सिया-सातिहि उर लावँ 1 अविचल वृत्ति विमान तहाँ सादर बैठावै ॥। मन मुनि को वरि सुखी भर्म महिभार उतारै । नाना सकट सह देव आतमहि उवारै ॥ सहज सर्प सो भवध है तहाँ पलटि कारज सरै। नहिं बनादास जन्मे मरै अविचल राज सदा करे ॥'* 'राममक्ति-साघना फा आदर्श-- जो ठाटै यह ठाद उपासक राम सो सच्चा । नतरु वेप करि लिए पेट के कारन कच्चा ॥ करम वचन मन चलै यहीं मग में मरि जावै। तो भी नहीं सदेह अंत में हरिपुर पावै ॥ रामकृपा सिधि होइ जो, जोवनमुक्त कहाइहै । यह वनादास यहि तन सुखी बहुरि न यहि जग आइहे ॥ राम के ऐतिहासिक चरित की आाध्यात्मिक व्यास्या के सूत्र बनादास को “स्वप्न गुरु! सुलसी को इतियों में मिले थे । सीताहरण से लेकर रावण बघ और सोता की पुनः प्राप्ति का घृत्त इस हप्टि से विशेष महत्व वा रहा है! अज्ञात के कारण मोहासक्त जीव को नित्पस्वभावयूठाशक्ति शार्ति का हरण होता है । वैराग्य वृत्ति के माध्यम से उसका संघान और पुनः प्राप्ति ही जीव अथवा साधक का परम पुरुपार्थ है । रावण के द्वीरा अपडता सीना को हनुमान के माध्यम से खोज छोर रावण का १. वही, पृ० १७ ९. उमय प्रवोधक रामायण पृ० १८ (५६) है. यही, पू० १८ (५७) ४. उ० प्र० रामायण, पृ १८ (५८)




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