भारत के स्त्री रत्न भाग 5 (दक्ष कथा सती) | Bharat Ke Stri Ratna Part -iv (daksh Katha Sati)
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.82 MB
कुल पष्ठ :
513
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ३ 3
चुम्दारी ओोर 'झाक्षित हों; क्योंकि, अक्सर धोखा होता
है, छौर कितनों दी के मन में बिना कारण ही चहम पेदा
होजाता दे है... ' '. !
५: पति जब उचित -बात करने को ,कद्दे तो, उसका विरोध
नहीं करना ।
६. छापने नेददर में झधिक समय तक न रहना ।
७, गूदस्थी सम्बन्धी, बातों में पढ़ोसी की सलाद न मानना,
और झपने नेहर वालों की सलाद पर काम करने का अधिक
'झाम्रद भी न करना, बल्कि खुद विचार करना और अपने स्वामी
से परामरश करना ।
८. झपने स्वामी को कभी बुरा मला न कदना। कभी 'छावेश
में छाकर भी छापने पति के सम्बन्ध सें बुरे, विचार यदि तुम
प्रगट क्रोगी तो दूसरे लोग ' उससे लाभ दठायेंगे 'और उसीसे
तुम्दारे पति के चरित्र का और शक्तियों का झनुमान करेंगे ।
९. हुँसना, सब बातों का ध्यान ' रखना ।' जब तुम्दारा पति
परेशान हो, थका हुआ दो, तो तुम्दारी मधघुर हँसी ही उसका
इलाज है । तुम अपने पति की भावनाओं का यदि ख्याल रक््खरोगी
तो बद्द भी तुम्ददारी भावनाओं का संस्मान 'करेगा। , , , ,
'. १० 'अपने, ख्रीत्व को कभी न भूलना। पुरुषों को जो तुम
समसका कर मनाओोगी तो वदद इसमें झपना अपमान नल सममेंगे
किन्तु यदि इन्हें दबाधोगी तो वह लुम्दारा सामनां करेंगे । 'और
जो तुम स्री-जनोचित विनय .'और ,सहदन-शीलता से उनके साथ
व्यवद्दार करोगी तो दुबेल स्वभाव ' ोने पर भी उसका सद्धाव
जाणूत दोगा श्र तुम उसे 'अंकुश में रख सकोगी ।
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