हम चकार रघुनाथ के | Ham Chakar Raghunath Ke
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रास्ते में नहीं खदेडा, यही गया कम है ? प्रगर ताई जी हमें धर से ही
निकाल देती तो भला हम क्या कर लेते ? हम लोग तो कोर्ट में जाकर
मभामला-मुकदमा कर नही पाते ।/”
“क्यों, तुम मामला-मुकदमा क्यों नहीं कर पाते 2”
राजू जवाब देता, “मा कहती है कि सिर के ऊपर भगवान तो है !
और फिर भगवान के कोर्ट से वडा कोर्ट भी नहीं है दुनिया में। साथ
ही भगवान से बढकर और कोई जज भी नहीं है। इमलिए भगवान के
कोर्ट मे लालिश करना ही काफी है।/
नब्दू कहता, बस, यही सब्र सोच-सोचकर हाथ पर हाय घरे बैठे
रहना | उसके सिवाय तुम करोगे भी क्या ? ”
इसके बाद फिर राजू बहस नहीं करता। भौर उसके बाद ही मास्टर
साहब मनास मे प्रा जाते। राजू नस्दू को चुभती हुई बातो में छूटकारा
पाता ।
लेकिन जिस दिन परीक्षा-फल सुताया गया, उस दिन राजू का चेहरा
देखकर हम सभी ताज्जुप्र मे पड गए 4
मैंने पूछा, “बयों रे, तेरा चेहरा इस तरह मुरभकाया हृप्ना बयो है ?
तू तो फर्स्ट झाया है रे! तूने तो ग् जीत लिया है राजू । फिर भी तेरे
होंठों पर हसी वर्यों नही है रे ?”
राजू प्रपने घर की तरफ पांव बढाने लगा।
उसने कहा, “भाई, मुझे झाज घर जाने मे बडा डर सम रहा है 1”
“क्यों 2!”
राजू ने कहा, , प्राज ताई जी चीख-चीस कर भ्रासमान मिर धर
उठा लेंगी। भाज थे मे री मा को सुना-सुनाकर खूब गालियां देंगी।
हमने पूछा, “तुम्हारी मा को यें गालियां क्यों देंगी ?”
राजू ने कहा, “बी-सेक्यन में मेरे ताऊ जी का लदका विनोद तीन
हम चाकर रघनताथ के / 25
User Reviews
No Reviews | Add Yours...