महाबन्धो | Mahabandho

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : महाबन्धो - Mahabandho

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

Add Infomation AboutPhoolchandra Sidhdant Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सण्णापरूंबणी ई चउवीस-अणिओगद्ारपरूवणा ४, एदेण अड्डपदेण तत्थ इमाणि चदुवीसमणियोगद्गाराणि णादव्याणि भवृति | ते जहा--रुण्णा सच्बबंधों णोसव्ववंधो उकस्सबंधों अणुकस्सवंधो जहण्णबंधो अजहप्णबंधो सादिबंधो अणादिबंधो धुषबंधो अद्धवबंधो एवं याव अप्पाबहुगे त्ति। भ्ुजगारबंधो पदणिक्खेबो बड्डिबंधो अज्ञवसाणससुदाहारो, जीवससुदाहारो ति।. १ सण्णापरुवणा ६, सण्णापरुवणदाए तत्थ सण्णा दुविहा-घादिसण्णा द्वाणसण्णा य। घादिसण्णाचहुण्णं घादीणं उकस्सअणुभागबंधों सन्बधादी । अणुकस्सअणुभागबंधों सव्बधादी वा देसघादी वा । जहण्णअणुभागवंधों देसघादी । अजहण्णओ अणुभागबंधो देसघादी वा सब्बधादी वा। सेसाणं चदुण्णं कम्माणं उक॒० अणु० जह० अज० अणुभागबंधो अघादी घादिपडिबद्धो । ७, झ्ाणसण्णा य च॒दुण्णं घादीणं उकस्सअणुभाग० चहुंद्ठाणियो | अशुक्कस्सअणु ० चदुद्दाणियों वा तिट्ठाणियों वा विट्ठाणियो वा एयड्डाणियो वा | जह० अणुभा० एयट्टा- णियो | अज० अणु० एयड्डाणियो वा विद्वाणियों वा तिट्ठाणियो वा चढदुट्ढाणियो वा । चदुण्णं अघादीणं उक० चहुद्डाणियो । अणुक्० अणुभा० चहुट्ठाणियों था तिट्ठाणियो, वा विट्वाणियो वा। जह० अशु० विट्वाणियों। अजह० अणु० विट्ठाणियो वा तिट्ठाणियों वा चदद्ढाणियों वा । उपलब्ध होते हैं । शेष क्रम प्रथम स्पर्धंकके समान जानना चाहिए । तथा यही क्रम अन्तिम स्पर्धक तक चिवक्षित है। ह चौबीस अलुयोगद्वार प्ररूपणा ५, इस अरथपद॒के अनुसार यहाँ ये चौबीस अनुयोद्वार ज्ञातव्य हैं । यथा--संज्ञा, सर्वबन्ध, नोसबेबन्ध, उत्कृष्टवन्ध, अजुत्कृष्टनन्ध, जघन्यवन्ध, अजघन्यवन्ध, सादिवन्ध, अनादिबन्ध, ध्रवचन्ध और अप्भववन्धसे लेकर अल्पबहुत्व तक। झुजगारबन्ध, पद्निश्षेप, चृद्धिवन्ध, अध्यवसानसमुदाद्यार ओर जीवसमुदाहार । १ संज्ञाग्ररूपणा ' ६. अब संक्षाप्ररूपणाका प्रकरण है । उसमें भी, संज्ञा दो प्रकारकी है--घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञा । घातिसंज्ञा--चार घातिकर्मोंका उत्कृष्ट अनुभागवन्ध सर्वेधाति होता है | अनुत्कृष्ट अजु- भागवन्ध सर्वघात्ति होता है ओर देशघाति होता है । जघन्य अनुभागवन्ध देशघाति होता है. तथा अजघन्य अनुभागबन्ध देशघाति होता है और स्ेघाति होता है। तथा शेष चार कर्मोका उत्कृष्ट, अनुत्कृष, जघन्य और अजघन्य अनुभागवन्ध घातिसे सस्वन्ध रखनेवाला अघाति होता है। ७, स्थानर्ंज्ञा--चार घातिकर्सोका उत्कृष्ट अनुभागवन्ध चतुःस्थानीय होता है। 'अनुत्कृष्ट अनुभागवन्ध चतुःस्थानीय होता है, त्रिस्थानीय होता है, ह्विस्थानीय होता है और एकस्थानीय होता है। जघन्य अनुभागवन्ध एकस्थानीय होता है। तथा अजघन्य अनुभागवन्ध एकस्थानीय होता है, छिस्थानीय होता है, भिस्थानीय होता है और चतुःस्थानीय होता है। चार अघावि फर्मोका उत्कृष्ट अनुभागवन्ध चतुःस्थानीय होता है| अलुत्कृष्ट अलुभागवन्ध चतुःस्थानीय द्वोता है, त्रिस्थानीय, होता है और द्विस्थानीय होता है। जधन्य अनुभागवन्ध हिस्थानीय द्वोता है त्था अज- घन्य अनुभागवन्ध हिस्थानीय द्ोता है, जिस्थानीय होता है और चतुःस्थानीय होता है । -




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now