दशरूपकम् | Dashrupakam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ३६ ]
तथा गुस्से में आकर प्रिय का निरादर करती हैं । विप्रलुब्धा नायिका संकेतस्थल (सहेट)
पर ब्रिय से मिलने जाती है, पर प्रिय को नहीं पाती, वह प्रिय के द्वारा ठगी गई
होती है! श्रोषितप्रियां का प्रियतम विदेश गया होता है। अभिसारिका नायिका
सजधजकर या तो स्वयं नायक से मिलने जाती है, या दूती आदि के द्वारा उसे अपने
पास बुला लेती है ।
नायक के ग्रुणों की भाँति नायिका सें भी गशुर्णो की स्थिति मानी गई है । नायिका
में ये भुण भूषण या अलुंकार कहलाते हैं, तथा गणना में बीस हैं। इन बीस अलंकारों
में पहले तीन शारीरिक हैं, दूसरे सात अयत्नज, तथा बाकी दस स्वभावज हैं । ये हैं :-
भाव, हाव, हेला, शोभा, कान्ति, दीप्ति, माघुये, ग्रगल्मता, औदाये, धैये, लीछा, विलास,
विच्छित्ति, विश्रम, किलकिश्वित, मोद्यायित, कुट्टमित, विव्वोक, ललित, तथा विहृत्त ।
नायिकाओं में राजा की पद्दराज्षी महादेवी कहलाती है। यह उच्चकुलोत्पन्न होती
है। राजा की रानियों में कई निम्नकुल की उपपल्नियों भी हो सकती हैं। इन्हें स्थायिनी
या भोगिनी कहा जाता है । राजा के अन्तः्पुर में कई सेवक होते हैं। कंचुकी इनमें
प्रधान होता है। यह आरायः वृद्ध ब्राह्मण होता हैं। कंचुकी के अतिरिक्त यहाँ बौने,
डे, नपुंसक ( वर्षवर ), किरात आदि भी रहते हैं । अन््तःपुर में रानियों की कई
सखियों, दासियाँ आदि भी वर्णित की जाती हैं ।
इसी सम्बन्ध में कई नाव्यशाख्र के ग्रन्थों में पात्रों के नामादि का भी संकेत किया
गया है, दशरूपक में इसका अभाव हैं। इनके मतानुसार गणिका का नाम दत्ता, सेना
या सिंद्धा में अन्त होना चाहिए, जैसे मच्छकटिक में चसन्तसेना का नाम । दास-
दासियों के नाम ऋतुसम्वन्धी पदार्थों से लिये गये हों, जेंसे मालतीमाधव में ऋलहंस
तथा मन्दारिका के नाम । कापालिकों के नाम घण्ट में अन्त होते हों, जेंसे मालतीमा घव
का अघोरघण्ट ।
नाटकादि में कौन पात्र किसे किस तरह सम्बोधित करे, इस शिश्ता का संकेत
भी नाव्यशासत्र के अ्न्थों में मिलता है | सामन्तादिं राजा को देव” या 'स्वामिन! कहते
हैं: पुरोहित या ब्राह्मण उसे आयुप्मचा कहते हैं, तथा निम्नकोटि के पात्र 'भद्दं ।
युवराज भी 'स्वामी” कहा जाता है, तथा दूसरे राजकुमार 'भद्बमुखा कहे जाते हैं ।
देवता तथा ऋषि-मुनि 'भगवन”! कहलाते हैं, तथा मन्त्री एवं ब्राद्मण आये! नाम से
सम्बोधित किये जाते हैं । पत्नी पति को “आयपुत्र' कहती हैं । विदुषक राजा या नायक
को वय्रस्यां कहता है, वह भी उसे 'वयस्या ही कहता है। छोटे लोग बड़े लोगों को
ततात” कहते हैं, बड़े लोग छोटे छोगों को 'तात' या बत्स! । मध्यवर्ग के पुरुष परस्पर
'हंहो' कह कर सम्बोधित करें, निन्न वर्ग के लोग 'हण्डे! कहकर । विंदुपक्र महादेवी या
उसकी सखियों को 'भवती” कहता है | सेविकाएं महादेवी था रानियों की भशध्नी! या
५ चो 5 न ँ हि
: 11मिनी' कद्दती हैँ । पति पत्नी को आया) कहता हूँ। राजकुमारियों 'भतृदारिका'
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