श्री स्थानाड्गसूत्रम् भाग - 3 | Shri Sthanadga Sutram Bhag - 3

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Shri Sthanadga Sutram Bhag - 3 by कन्हैयालाल जी महाराज - Kanhaiyalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सथा दीका स्था०४ उ०३ सु०२ पश्षिदष्डान्तेन चतुविधपुरुषज्ञातनिरुषणम्‌ ७ ध्व््य््ल्ज्््च्ल्ल््ख्ल्क्च्य्य्श्श्श्श््ल््््य्श्ल्ख््््््््््््स््च्य्सच्य्स्लस्स्स्य्सच्सल्च्ल्च् ल-च_ ् ्+ः»् ्न-च५् , ््॑ ् ,॑/ः्न्‍्मसनन्य्यय् य्य्य्य्स्क्य्क्च्ल्ल््च््ल्ंक्श्् म्पस्नोडपि ३, एक्को नो रुतसम्पन्नों नो रूपसम्पन्त- ४ एयमेव चत्रारि - पुरुष जातानि प्रज्ञप्तनि; तद्यथा-रुतसम्पन्नो नामेक्ो नो रूपसम्पन्नः 8। १॥ चल्वारि पुरुषजातानि प्रज्प्तानि, तद्रथा-प्रीतिक॑ करोमीत्येकः प्रीतिक॑ करोति १, प्रीतिक॑ करोमीत्येझो>पीतिक करोति २, अप्रीतिक करोपमीत्येक प्रीतिकं करोति ३, अपीतिक करोमीत्येकोउपीतिक करोति ४।।२ चत्वारि पुरुषजातानि पन्ञप्ञानि, तद्यथा-आत्मनो नामैकोउ्पीतिक करोति नी परस्य १, परस्य नामेकः प्रीतिक करोति नो आत्मन! ४७, । ३ । झावद भी उसका आनन्द दायक होता है-३२ और-कोई एक पक्षों ऐसा होता है, जो-नतो बोलने में ओर-न देखने में सुन्दर होता है-४ इसी प्रकार पुरुष जात चार हैं कोई एक ऐसा होता है जिसका शब्द आनन्द दायक होता है किन्तु-आकार खुन्दर नहीं होता है-! कोई पुरुष ऐसा होता है जो रूप में तो सुन्दर, पर-बोलने में नहीं-२ कोई एक ऐसा होता है जो बोलने में मी और-आकार में भी सुन्दर होता है-३ कोई एक न तो बोलने में-न देखने में सुन्दर होता है-७ फिरभी--चार प्रकार के पुरुष होता हैं, जसे-कोई एक ऐसा होता है जो-“ में प्रीति करूं ”-ऐसा निश्चय करके प्रीति करता है-१ कोई एक मैं प्रीति करूं ऐसा निश्चय करके भी प्रीति नहीं करताहै-२ कोई एक पुरुष ४ मे अप्रीति करूं”! ऐसा निश्रय करके भी अप्रीति नहीं करता है-३ पणु छु६९ छे।य छे जने तेने। जवान्/ पु जमानइदय: छे।य छे, (४) ओ्छी शे5 पक्षी शत्रु छेाय छे हे बने जपा।/ पणु भधुर छे'ते। नथी जने देणाव 'पछु सुददर छाते। नथी, में ०/ अभाशु पुरुष पणु थार अधारना छे।य छे, (३) है।४ ओे& थुरु पनी बाण जानहहायड छेाय छे, पणु देजाव सुर छाते। नथी (२) झह्ठना हेणाव सुंदर डेांय छे पणु वाणी भछुर छाती नथी, (3) झे8नी कणी पणु भघुर डाय छे जने इेणाप पछएु सुदर छाय छे, (४) ड।४नी वाणी पणु भीही डती नथी बने हेणव पछु झुधर छेते। नथी पुरुषना ब्थ अभाए पशु यार अड्भर पड़े छे--(१) ओएं थे६ पुरुष खेवे। छाय छे ॥ ० औपि ४२- बाने। निश्चय 3रीने श्रीतत 5री शह्ले छे.' (२) आए औति इ४रवाने निश्चय 3सप छतां भीति 3रते। नथी, (४) जर्छ थुरुष मपीति शसवाना निश्चय 3रीने न्ञप्रीति ०” 3रे छे,




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