काव्य त्रिवेणी | Kavya Tirveni

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Kavya Tirveni by वल्लभमुनिजी - Vallabhmuniji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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|| 242..60 00५ 4... ०७ जी हे. हक 0 2२५ 20 ऑल, १५ 2... 40५ 0० 4२५ 0. 40.44 2७ 2... 4 4, 40 40३ 48.3 स्वामीनाथ - पूज्य श्री पूलचन्द -गरु- स्तुति “+# मालिनी वत्तम्‌ #-- ' > जयति सुजनतानां, योजने योकतृचन्द्र:, सुगुण - गण - गरिस्ना, गीयमानों गुरोन्‍नद्रः+ सतत समितिसुक्त्या, सूरि - सूर्य - प्रकेन्द्रग, जयतु दिवि हि देव, धृलचन्द्रो मुनीन्‍्द्रः। न: पद्यार्थ #- भवि को सनन्‍्मसाग बताने से है .. तुम “योक्‍्तुचन्द्र” कहलाते हो। गुण गण गरिमा से स्तुत्य बने द गरुणियों में इन्द्र सुहाते हो॥ समिति सुक्त के भाषण से आचाय समान सुनोइवर हो। अ्री धुलचन्द्रर गुरुराज श्रापकी सदाकाल हो जय जय हो ॥




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