राजनीति विज्ञान के मूल सिद्धान्त | Rajniti Vigyan Ke Mool Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजनीति विनान परिभाषा 9 थी। ऐसी स्थिति म राजनीति विज्ञान राज्य व सरकार अथवा दोनों का समावित अध्ययन ही हो सकता था वैचारिक दृष्टि से व्यापकता का आभास दँने वाली विचार योज- नाए जैसे शझ्रादक्षबाद व इतिहासवाद वास्तव मे राज्य व तत्सम्ब्रधी विचारधाराओ वी ही व्याय्या करती थी । आदशवाद राज्य की अनिवार्यता व मागलिक्ता स्पष्ट करता था जबकि इतिहासवाद इतिहास के दशन को गढते हुए व इतिहास के मूल तत्त्व को सजोकर राज्य व प्रचलित विचारधारा (उदाहरणाथें उदारबादी लोक्तन) की समथक व्याख्याए प्रस्तुत करता था। हमगल जहा आदशवादी व्याख्याता के रूप मे प्रकट होता है वही आनल्‍्ड टॉयबी ने ए स्टडी आँव हिस्टरी म॑ इतिहास दशन का परिमाजन किया है । राजनीति विज्ञान की प्रकृति का समसामयिक सदभ यद्यपि अपने बीज रूप मे वीसवी शताब्दी के प्रारम्भ से ही विद्यमान था और “यवस्था विश्लेषण व्यवहारवादी आदि वचारिक व्यवस्थाए इस दौरान अकुरित हुई थी लेकिन उसका वतमान व्यवस्थित रूप द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के उपरात प्रकट हुआ है। आज राजनीति विज्ञान की प्रकृति निम्त प्रवृत्तियो स सहज समझी जा सक्‍्ती है -- 1 राजनीति विन्ञान अपन समसामयिक सदभ म जानुभविक प्रकृति प्राप्त है। इसका अभिप्राम यह है कि अनुभूति की प्रामाणिक्ता राजनीतिक सत्य निधारित करती है न कि क्सी कत्पित धारणा द्वारा राजनीतिक सत्य उदघाटित होता है, आज राजनीति विज्ञान आनुभाविक होने के साथ-साथ थेज्ञानिष भी है। इसका अथ यह है कि वैज्ञानिक पद्धति की सहायता से अनुभवज-य सत्य वा निखा रा-तराशा जाता है और उसके उपरात सिद्धात निर्माण अभ्यास सयोजित किए जाते है। राजनीति वी दुनिया मे भी काय-कारणत्व (८्याधथ19) प्रासग्रिकहै और उसके सदभ भ राजनीतिक घटनाओं व उनकी पुनरावृत्ति की व्याख्या वी जाती है राजनीति की वैज्ञानिकता उसके वास्तविक व्यवहार के अध्ययन पर निभर है। इस दृष्टि से राजनीतिक प्रक्रिया का अध्ययन आज केद्रीय महत्त्व रखता है। इसके बतगत प्रक्रिया को निर्धा रित करने वाले धत्त्वो व उससे निर्धारित होने वाले तत्त्वों, दोनो




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