शरत साहित्य | Sarat sahitya

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Sarat sahitya by पं रूपनारायण पांडेय - Pt Roopnarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विराज बहन १९ जौश्म॑मरने फिर ब्येर नहीं दिया | उसी हरए बैठेजैठे उस आर्कामें घोरे परे उँगकी चड्यते हुए चुफ्वाप उसे सानबना देने हूगा | कौनफे वियाहमे क्ति- माइर सल कर डाहलेफे कारण बह कुछ उतहनमें पढ़ गया था भर कब पटैडी हरइ प्रास्‍्थोका काम नहीं चढ़ प्रठा था | उसपर शो सास्से श्याठार अकारू पह रहा था। कोरौम घान नहीं पोकरमें पानी नहीं, मछडछौ नहीं। ढैकेडा दाग सछता जय रहा प्र । बायमे दष्पे मौगू दआकर हो था रहे थे। ऊपरते शेनदार्सेने तगादेकै द्विए झाना ज्यना घुरू कर दिपा था। उभर पूंटीके समुर मौ रूइकैंकी फदाईडे लर्जल सिए कुक मौटी, कुछ कडयी निद्वियों मेज रे है । दिराज बह सब झानती न थी। कितने ही ने रघनेबारी भ्रपिय ुख्भार गड़ी काँएएसे नीखांवरने हिपा रुप ये / इक्त छमप वह ठग्म्म्न शोषर छोबने डूगा--आन पहलता है, दिरीने मे सम गाते दिराज़्से कष्ट दौ है सिएित एकऋए% मैंह ऊपर उठाकर मुस्काई थोर बोडी--भच्छा, एक बात पुर , रुज-राच बढाओगे ! नौल्फारने मन ही मन झार भफ्कि शंडित होफर कष्टा--कोन सौ शत ! मिराजकी सभते बड़ी सुन्ररहा उसके मुछकी मनोहर ईंट औौ एक बार किए बड़ी हैलो इंतकर नौघांगरड़े मुझड्ी शोर रेसती दु बह बोकमो--भणम, मे डाठी ऋुरत्ठ हो नहीं हू | नीश्मकरने सिर हिष्वकर कान | गिराने पूछा-लगर में कामी-युन्दित हो, तो क्‍या तुम सुझ्रे इतना चाइते--इतना प्यार करते ! यह भदूसुत प्रमत छुत्क्र प्यार बह छुक्त गिरिमत दुआ तक उत्तकी झतीपरते लैसे एक मारी बोह तइता उठर गया। उसने पतन हार हँसते हुए फशा--मैं-ठो बचप्नते एड फरम कु्दरौको ही प्यार इस्ता आया हैँ | कप इस उमर डैसे कटा हि बद अगर काछी इुस्तत होडी हो कया कर्ता ! किपययने दोनों हाव पहिड़ै गरम शब् हिवे भौर और मी एस मद के कादर बडा --म बता हूँ कि शुभ क्‍या करते ! तर रहे तुम युछ्ते ऐसे ईी प्यारणरते ! छिर भौ मीशांगर उसके मुखका चुपचाप देखठा रहा |




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