इतिवुत्तक | Itivuttak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( मर ) संघ की फूट होने पर परस्पर रूगड़े होते हैं, परस्पर डॉटना और गाली देनी होती है तथा परस्पर बिलगाव करने होते हैं। ऐसा होने पर अ- श्रद्धालु क्लोग श्रद्धा नहीं करते ओर श्रद्धालु लोगों में से भी किसी-किसी का मन फिर जाता है |“ “संघ की फूट कराने वाला कल्प-मर नरक में रहने वाहढ्वा होता है। फूट ढालने में त्लीन, अधार्मिक व्यक्ति निर्वाण के प्राप्ति से बंचित होता है । व्ड सिलकर रहने वाले संध को फोडकर कर्प भर नरक सें पकता है |” 8, संघ का मेल भिश्लुओ ! लोक में एक बात पेदा होती हुईं बहुत से लोगों के द्वित सुख भोर अथ के लिए पैदा होती हे उससे देव मनुष्यों की भज्ञाई द्ोती है, सुख मिलता है | कौन-सी एक बात ? संघ का मेत्न । भिक्षुओं ! संघ के मिलकर रहने पर न परस्पर भगड़े होते हैं, न परस्पर डांटना और गाक्की देनी होती है तथा न परस्पर बिल्लगाव होता है। ऐसा द्ोने पर अश्रद्धालु लोग श्रद्धा करते हैं ओर श्रद्धालुओं की अरद्धा बढ़ती है ।“ “रूघ का मिलकर रहना सुखदायक दहँ। मेत् बढ़ाने वाला, मेल करने में लोन, धार्मिक व्यक्ति निर्यदाण से बंचित नहीं होता । वह संघ को मिलाकर कल्प भर रबर में आनन्द करता दे ।” १० बुरा चित्त भिक्षुओ ! में यहां किसी बुरे छित्तवात्ने व्यक्ति के चिस को अपने चित्त से समझ कर ऐसा जानता हँ---यदि यद्द व्यक्ति इस समय मरेगा तो लाये हुए को रखने के समान नरक में उत्पन्न ड्वोगा। सो किस कारण ? मिक्षओ इसका चित्त बुरा है। भिक्षुओ ! इसका चित्त बुरा होने के कारण इस अकार कोई आणी शरीर छूटने पर” नरक में पैदा होता है....




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