आराधनासार | Aradhna Sar

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Aradhna Sar by गजाधर लाल - Gjadhar Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आराधनासार-हिदी टोका सहित पट जा अनुसार अपने चलनेकी सामथ्य न होनेसे उसकी निंदा करना, हँसी उडाना किंधा उसके आराधकोंके दोष प्रगट करना अनु- पगूहन, जो सनुष्य किसी खास कारणसे सम्यग्द्शन वा चारित्र आदिसे धिप्ठुख हों उन्हें ओर भी पवित्र पके दोप सुझादर वि्युख करना अस्थिति करण, पर्माच्माओंमें प्रीति न करना उन्हें घृणाकी दृष्टिसे देखना अवात्सल्य और जिन कार्योत्ि धर्म की ग्रभावना होती हो उन कार्तोंका बंद करदेना अप्रभावना है। जश्ञानका अहंकार करना ज्ञानमंद, पूजाका अहंकार करना पूजासद, अपने कुलका अहंकार करना कुलमद, जातिका शहं कार करना जादिमर, बलका अहंकार करना वलसद, आद्धि-पन आदिका अहंकार करना ऋद्धिमद, तपका अ्रहंकार करना तप- मद और शरीरका अहंकार करना शरीरमद है। जो सम्यक्त्व आदि गुणोंका आयतन-स्थान न होकर उससे विपरीत स्थ्यात्व आदि दोपोंका स्थान हो वह अनायतन कहा जाता है | रागद् प आदिसे परिषूण देव मिथ्यादेव, उनकी सेवा शुश्षपा क देवाले सिध्यादेवाराधक, पंचामि आदि हिसाझे . कारण ठप मिथ्यातप, उसके करनेवाले #िध्यातपरवी, हितकारी ' मागसे अ्टकरनेबाले सिथ्याशास्त्र ओर उनके भक्त पिश्या- शास्त्राराधक है। इनकी सेवा शुश्रपा करना वा इन्हें उत्तम मानना अनायतनसेवा है | इन पदच्चीस दोपोंके करनेसे सम्यग्दशन दपित होता है ॥ अब सस्कृतटाकाकार व्यवहार सम्यन्दशन आराधना का फल: बंतंलोति हैं---




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