गवाह नंबर तीन | Gwah Number Teen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थाबूजी बाएं ये, इसलिए मैंने सोचा, एक वार घर पर चक्कर छगा
भाऊं।
“--बाबूजी ? बावूजो कब आए ?
कमला बोली --वादुजी के आने पर ही तो मैं गई थी ६
यह सुनते हो महिला का चेहरा उतर गया। बोली--
कहां हैं चाथुजी ? भुझे तो दिखाई नहीं देते॥ इतना कहकर अन्दर
वाले कमरे की तरफ जानेवाली हो थी कि उसके पहले ही अन्दर की ओर
से एक सज्जन गिरते-पड़ते बाहर के कमरे में आ पहुंचे । उसे देखकर वह
महिला थोड़ा चौंकी, फिर बोली--तुम ? तुम कब आए ?
चस सज्जन की आसे करौंदों की तरह छाल थों, और उन्ही छाल
आंखों से वह मुप्नें घूर रहा था । इस तरह की सन्देहजनक दृष्टि मुझे
अच्छी नहीं छग रही थी। में सोच ही रहा था कि जब यहा से चलता
चाहिए कि उस सज्जन ने मुझसे पूछा--आप कौन हैं ? सरयू की जान-
पहचान के अष्दमी ?
इसके जवाब मे में क्या बोलू, समझ में नहीं आया ।
महिला सज्जन को रोकते हुए बीली--तुम इस कमरे में क्यों आए ?
चलो । उस कमरे मे चछो ।
पर बह बिल्कुल थे रहे | बोडे--क्यो ? उस कमरे मे क्यों आऊं ?
मैं यहा बिल्कुल ठीऊ हूं ।
ससयू बोढी-नही । तुम ठीक नहीं हो । आज तुम फिर पीकर आएं
हो । चलो, उस्र कमरे में चछो।
पर वह सरयू का हाथ छुडाते हुए बोछा--व्यो ? तुम्हें शर्म भा रही
है? में शराव पीता हूं, पह जानकर लोग मुझसे घृणा करते हैं। में जो
करता हूं, ठोक करता हूं | मैं शराव पीता हूं, इसमें किसीके बाप का
चया ?
वातावरण कुत्सित बनता जा रहा था। मैं भो शर्म से गड़ा जा रहा
था| ससयू भी छज्जित थी । बोली--वपा वक रहे द्वो तुम ?शराद पीने से
पयां दिमाग भी ठिकाने पर नहीं रहा ?
सरयू को अनसुनी करके उसने मुझे अपना गवाह बनाया। बोला
श३
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