गवाह नंबर तीन | Gwah Number Teen

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Gwah Number Teen by विमल मित्र - Vimal Mitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थाबूजी बाएं ये, इसलिए मैंने सोचा, एक वार घर पर चक्कर छगा भाऊं। “--बाबूजी ? बावूजो कब आए ? कमला बोली --वादुजी के आने पर ही तो मैं गई थी ६ यह सुनते हो महिला का चेहरा उतर गया। बोली-- कहां हैं चाथुजी ? भुझे तो दिखाई नहीं देते॥ इतना कहकर अन्दर वाले कमरे की तरफ जानेवाली हो थी कि उसके पहले ही अन्दर की ओर से एक सज्जन गिरते-पड़ते बाहर के कमरे में आ पहुंचे । उसे देखकर वह महिला थोड़ा चौंकी, फिर बोली--तुम ? तुम कब आए ? चस सज्जन की आसे करौंदों की तरह छाल थों, और उन्ही छाल आंखों से वह मुप्नें घूर रहा था । इस तरह की सन्देहजनक दृष्टि मुझे अच्छी नहीं छग रही थी। में सोच ही रहा था कि जब यहा से चलता चाहिए कि उस सज्जन ने मुझसे पूछा--आप कौन हैं ? सरयू की जान- पहचान के अष्दमी ? इसके जवाब मे में क्या बोलू, समझ में नहीं आया । महिला सज्जन को रोकते हुए बीली--तुम इस कमरे में क्यों आए ? चलो । उस कमरे मे चछो । पर बह बिल्कुल थे रहे | बोडे--क्यो ? उस कमरे मे क्यों आऊं ? मैं यहा बिल्कुल ठीऊ हूं । ससयू बोढी-नही । तुम ठीक नहीं हो । आज तुम फिर पीकर आएं हो । चलो, उस्र कमरे में चछो। पर वह सरयू का हाथ छुडाते हुए बोछा--व्यो ? तुम्हें शर्म भा रही है? में शराव पीता हूं, पह जानकर लोग मुझसे घृणा करते हैं। में जो करता हूं, ठोक करता हूं | मैं शराव पीता हूं, इसमें किसीके बाप का चया ? वातावरण कुत्सित बनता जा रहा था। मैं भो शर्म से गड़ा जा रहा था| ससयू भी छज्जित थी । बोली--वपा वक रहे द्वो तुम ?शराद पीने से पयां दिमाग भी ठिकाने पर नहीं रहा ? सरयू को अनसुनी करके उसने मुझे अपना गवाह बनाया। बोला श३




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